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अपनी परम्परा-संस्कृति को नहीं भूलें

प्रो. लक्ष्मी यादव
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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आया मनभावन वसंत…

प्रति वर्ष वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा- आराधना की जाती है। वसंत ऋतु बड़ी ही मनभावन ऋतु है। इसका सबको बेसब्री से इंतज़ार रहता है। वसंत माह में शीतल हवाएँ, हरे-भरे पेड़- पौधे, चारों तरफ हरियाली ही हरियाली, खेत में सरसों के पीले फूल इस प्रकार लगते हैं, जैसे वह कह रही हो कि, अपने जीवन का दु:ख भूल कर इस प्रकृति से प्यार कर… इन ठंडी-ठंडी हवाओं में खो जा… अपने-आपसे प्यार कर।

आज पाश्चात्य संस्कृति हमारे देश में इस प्रकार हावी हो गई है कि, बच्चे “वसंत पंचमी क्या है ?”, ऐसे प्रश्न पूछते हैं। उन्हें ‘वैलेन्टाइन-डे’ क्या है, वह पता है, पर अपनी भारतीय परम्परा सभ्यता-संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। बच्चों को पाश्चात्य नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति से परिचित कराना हमारा कर्तव्य है। माता-पिता को चाहिए कि, बच्चों को बताएं कि, वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है, न कि ‘वैलेंटाइन-डे’ मनाया जाता है। उक्त डे हमारी संस्कृति नहीं है। जब राम १४ वर्ष के बाद अपनी नगरी में लौटे थे। चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ मनाई जा रही थी, पूरे ब्रह्मांड में खुशियाँ छा गई थी, उसी प्रकार वसंत ऋतु खुशियाँ लेकर आती है। पूरी प्रकृति में मानो चारों तरफ सकारात्मकता फैलाती है, पेड़ों में नई-नई पत्तियाँ निकलती हैं और हर तरफ हरा-भरा लगता है। इस ऋतु में लगता है कि, चारों दिशाओं में पेड़-पौधे झूम-झूम कर गीत गा रहे हों, एक-दूसरे से मानो बातें कर रहे हों।