कुल पृष्ठ दर्शन : 177

You are currently viewing अपने-पराये

अपने-पराये

आशीष प्रेम ‘शंकर’
मधुबनी(बिहार)
**************************************************************************
अपनों के अपनेपन को जब-जब मैंने देखा यारों,
अपनों ने ही आघात किया अपनों ने किया सौदा यारों।

हरदम मैं आस लगाए था,
और बदले में कुछ पाया था
उन्होंने दिया जो भी मुझको कोई और नहीं दे पाया था।

जी हाँ,मैं ये सच कहता हूँ,
आप-बीती सब गुनता हूँ
खुशियाँ भी दी,हर पल-पल में,
बैचेन-सी वो रहती थी
अपनेपन का रिश्ता यारों,
हर सुबह कहानी लिखती थी।

इसने मुझको क्या दर्द दिया,
ये कहना भी कुछ उचित न था
दर्द दिया कि खुशियाँ,ये तो अपनों के बस ऊपर था।

अनुशंसा कुछ कर नहीं सकता,
उनकी बातें धर नहीं सकता
न जाने वो क्या समझेंगे !
अच्छा कभी,बुरा समझेंगे।

गंभीर की टोली है वो,
संकट की रंगोली है वो
पर दूर रहा भी जा न सकता,
अपने की यही होली है वो।

समझ न पाऊं क्या है ये रिश्ता,
पल-पल की बस खबर है रखता
हर संभव ये साथ निभाता,
दोष समय हो समझ हो त्राता।

कैसे करूं इसका सम्मान,
हो जाऊं क्या इससे आन!
कोई कह दे इसकी महिमा,
ये है क्या,क्या इसकी गरिमा।

कहते लोग बड़े संगम से,
अपनेपन में सारी अंते
अपना भाव सुनाता हूँ मैं,
निजता है बस रिश्ते गम के।
निजता है बस रिश्ते गम के…॥

परिचय-आशीष कुमार पाण्डेय का साहित्यिक उपनाम ‘आशीष प्रेम शंकर’ है। यह पण्डौल(मधुबनी,बिहार)में १९९८ में २२ फरवरी को जन्में हैं,तथा वर्तमान और स्थाई निवास पण्डौल ही है। इनको हिन्दी, मैथिली और उर्दू भाषा का ज्ञान है। बिहार से रिश्ता रखने वाले आशीष पाण्डेय ने बी.-एससी. की शिक्षा हासिल की है। फिलहाल कार्यक्षेत्र-पढ़ाई है। आप सामाजिक गतिविधि में सक्रिय हैं। लेखन विधा-काव्य है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में केसरी सिंह बारहठ सम्मान,साहित्य साधक सम्मान,मीन साहित्यिक सम्मान और मिथिलाक्षर प्रवीण सम्मान हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जागरूक होना और लोगों को भी करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एवं प्रेरणापुंज-पूर्वज विद्यापति हैं। इनकी विशेषज्ञता-संगीत एवं रचनात्मकता है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी भाषा है,और इसके लिए हमारे पूर्वजों ने क्या कुछ नहीं किया है,लेकिन वर्तमान में इसकी स्थिति खराब होती जा रही है। लोग इसे प्रयोग करने में स्वयं को अपमानित अनुभव करते हैं,पर हमें इसके प्रति फिर से और प्रेम जगाना है,क्योंकि ये हमारी सांस्कृतिक विरासत है। इसे इतना तुच्छ न समझा जाए।

Leave a Reply