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अब न मान, न मर्यादा

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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स्वयंवर कराना अब आसान न रहा,
बुजुर्गों की बात मानना आसां न रहा
पुराना रिश्ता निभाना आसान न रहा,
किरदार में नया रिश्ता आसान न रहा।

पहले स्वयंवर से कोई परेशां न रहा,
माँ-बाप के फैसले से निराश न रहा,
काले दूल्हे-गोरी दुल्हन का नाज़ न रहा,
गोरे दूल्हे-काली दुल्हन का रिवाज न रहा।

वो भी अजीब दौर था, बड़ों का बात सिरमौर था,
लंबे-नाटे, गोरे-काले, मोटे-पतले रिश्ता का दौर था
दादा-दादी की बातों में ही रिश्तों का जोड़ था,
सिर्फ बातों ही बातों में बनता रिश्ता बेजोड़ था।

सैकड़ों वर्षों तक ऐसे रिश्तों में खुशियों का गठजोड़ था,
दिखता नए रिश्तों में महीनों में ही भांडाफोड़ था
नई पीढ़ी क्या जाने ? संयुक्त परिवार में कैसा मोड़ था
झूठी मुहब्बत, प्रेमजाल, मायाजाल तब त्रिकोण था।

गूंगी कन्या संग भी बहरे पति का रिश्ता समकोण था,
अंधे पति संग भी खूबसूरत पत्नी का रिश्ता परिपूर्ण था
समता-विषमता में भी सारा रिश्ता भाव पूर्ण था,
इतनी विकृतियों में भी सबका आदर न द्वेषपूर्ण था।

पुरानी सभ्यता और संस्कार हर रंग में सम्पूर्ण था,
भले ही मानव ज्ञान-संज्ञान में पूरी तरह अपूर्ण था
लेकिन प्रेम, स्नेह, समर्पण, भावना जमाने में पूर्ण था,
क्या टिकेंगे रिश्ते उन कसौटी पर, जो ज्ञान ही त्रुटि-पूर्ण था ?

अब नए रिश्तों में माँ-बाप परेशान हैं,
बच्चों की मर्जी ही बच्चों की शान है
अंग्रेजियत ने चढ़ाया उन्हें परवान है,
माँ-बाप के सपनों को तोड़ता हैवान है।

आज के बच्चों का अजीब अरमान है,
बीबी की नौकरी और बीबी में जान है
बच्चों की खातिर नौकरानी महान है,
माता-पिता से बच्चों में संक्रमण का ध्यान है।

न मान-न मर्यादा अब तो सब कुछ हराम है,
बुजुर्गों और वृद्धों में मचा कोहराम है।
वृद्धाश्रम का चला अब नया आयाम है,
जीते-जी लाश बन, सुनो गाली खुलेआम है॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”