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सामाजिक विषमताओं पर प्रहार करती है डॉ. अंशुल की कविताएं

पटना (बिहार)।

डॉ. तारा सिंह ‘अंशुल’ की कविताएं नारी सशक्तिकरण को समर्पित हैं। ‘जिस घर में बच्ची नहीं होती, वह घर-घर नहीं होता’, यहीं पर उनकी कविता में सामाजिक विसंगतियाँ उभर कर सामने आई है। आज के दौर में इस तरह की कविताएं हमारे भीतर ऊर्जा का संचार करती है। इस संस्था के संयोजक सिद्धेश्वर जी ने देशभर के लोगों को एक सूत्र में बांध रखा है, जो अभिनंदनीय है।
आभासी रूप से आयोजित कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ गीतकार हरि नारायण सिंह ‘हरि’ ने यह बात कही। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में सम्मेलन का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष व संयोजक सिद्धेश्वर ने अंशुल की कविताओं की विशेषता की व्याख्या करते हुए कहा कि, अंशुल लंबे समय से काव्य साधना कर रही हैं। इसी का परिणाम है कि, उनकी कविताएं बरबस हमारे हृदय की संवेदनाओं को झँकृत कर देती है, और सलीके से आगे बढ़ती है-‘तू चाहती है जैसी है तुझे वैसा हमसफ़र मिले, सही इरादे हो हमारे वो इंसाफ की डगर मिले।’
आपने कहा कि, आज कविता विकट दौर से गुजर रही है। कहानी और लघुकथा की दौड़ में कविता हांफ रही है। मुख्यधारा के कई कवियों ने यश और सम्मान तो बहुत लूटे, मगर वे आम पाठकों से धीरे-धीरे दूर होते चले गए।
गाजियाबाद की डॉ. तारा सिंह जिनके गीतों और कविताओं में ताजगी का एहसास आज भी होता है। उनकी कविताओं में जो काव्यात्मकता झलकती है, वह बहुत कम वरिष्ठ कवियों के पास सुरक्षित है। उनकी कविता की बानगी देखिए-‘है जिंदगी यह मेरा दिल तेरा ही कदर दान है/बदलती तू प्रश्न रोज, देता उत्तर दिल हैरान है।’ जिंदगी से सवाल और जवाब करती यह कविता हमारे विचारों को ताजगी से भर देती है।
मुख्य अतिथि डॉ. अंशुल ने कहा कि, समकालीन कविता अब एक नए तेवर के साथ सामने आ रही है, एक नई परिभाषा गढ़ने का प्रयास कर रही है, पारंपरिक छँद विधान से जरा हटकर मुक्त छंद में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का जोखिम उठा रही है आज की कविताएं। इस तरह की कविताएं आम लोगों के हृदय में काफी दिनों तक रची-बसी रहती है। आपने प्रथम सत्र में अपनी १२ समकालीन कविताओं का पाठ किया।
परिषद् की सचिव ऋचा वर्मा

ने बताया कि, सम्मेलन में हरिनारायण हरि, शंकर भगवान सिंह, शैलजा सिंह, राजेंद्र राज विजया कुमारी मौर्य, पुष्प रंजन और सुधा पांडेय आदि ने एक से बढ़कर एक गीत, ग़ज़ल और समकालीन कविताओं की झड़ी लगाई। डॉ. शरद नारायण खरे, सुनील उपाध्याय, अशोक राजपूत आदि कवियों की भी भागीदारी रही। सम्मेलन का सह संचालन इंदु उपाध्याय ने किया।