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अब बस

अरुण कुमार पासवान
ग्रेटर नोएडा(उत्तरप्रदेश)
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कितनी जिज्ञासु हैं आँखें!
देखना चाहती हैं कितना कुछ
बहुत कुछ,सब कुछ;
इसलिए चहेती हैं,
मन की,दिल की,पूरे जिस्म की।
ये देती हैं भूख,पूरे जिस्म को,
लालच भी देती हैं,भटकाती भी हैं
पर शिकायत पर,झुक जाती भी हैं,
इसलिए और भी चहेती हो जाती हैं।
जहाँ तक पहुँचती हैं,
कितना कुछ दिखाती हैं ?
बन्द होंठों के पैग़ाम भी
ले जाती हैं,ले आती हैं;
और देखना चाहती हैं
अंतिम साँस के बाद भी,
धड़कनों के रुक जाने के बाद भी
मन के अचेतन हो जाने के बाद भी,
अपनी पुतलियों के थम जाने के बाद भी;
जब तक कोई हथेली,कोई उँगली
गिरा न दे परदा,ज़िंदगी के नाटक का,
बन्द न कर दे उसकी अपनी ही पलकें
कह न दे,…अब बसll

परिचय:अरुण कुमार पासवान का वर्तमान निवास उत्तरप्रदेश के ग्रेटर नोएडा एवं स्थाई बसेरा जिला-भागलपुर(बिहार)में है। इनकी जन्म तारीख १७ दिसम्बर १९५८ और जन्म स्थान-भागलपुर है। हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री पासवान ने ३ विषय में एम.ए.(इतिहास,हिंदी व अंग्रेज़ी) और विधि में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्य क्षेत्र-सहायक निदेशक, कायर्क्रम सेवा(सेवानिवृत्त-आकाशवाणी)का रहा है। कविता,कहानी,नाटक,लेख में निपुण श्री पासवान के नाम प्रकाशन में-पितृ ऋण (गद्य),अल्मोड़ा के गुलाब (काव्य संग्रह),७ सम्पादित काव्य संग्रह,३ पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित है। आप एक पत्रिका के सह-सम्पादक होने के साथ ही पोर्टल पर लेखन में सक्रिय हैं। लेखन का उद्देश्य-साहित्य सेवा और पसंदीदा हिंदी लेखक-निराला,दिनकर हैं। आपके लिए प्रेरणापुंज- दिनकर हैं। देश और हिंदी भाषा पर आपकी राय-“भारत सामाजिक समन्वय में विश्वास रखता रहा है। इसकी सांस्कृतिक विरासत का कोई सानी नहीं है। हिंदी भाषा को भारतीय संस्कृति की परिचायक और प्रतिनिधि भाषा कहना उपयुक्त होगा। सहिष्णुता हिंदी भाषा का प्रधान चरित्र है।”

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