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अभिनंदन मेहमान का

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मातु पिता जयगान हो,जय गुरु जय मेहमान।
भक्ति प्रेम जन गण वतन,ईश्वर दो वरदान॥

अभिनंदन मेहमान का,हो स्वागत सम्मान।
मधुर भाष मुख हास से,समझ अतिथि भगवान॥

अतिथि जगत में पूज्य है,देवतुल्य तिहुँ लोक।
करें समादर विनत मन,मिटे सकल दु:ख शोक॥

जीवन का सौभाग्य है,आगम घर मेहमान।
आनंदित आतिथ्य से,बढ़े गेह की शान॥

अतिथि देवो भव समझो,पूर्व पुण्य विधिलेख।
साधु समागम सम अतिथि,आगम खुशियाँ देख॥

आते तिथि बिन अतिथि नित,लखि हर्षित परिवार।
खिले खुशी मुस्कान मुख,अतिथि देव सत्कार॥

सदाचार मानक अतिथि,संस्कार गुण त्याग।
प्रीति नीति व्यवहार से,सहज हृदय अनुराग॥

अतिथि सद सत्प्रेरणा,शील धीर मधुकान्त।
आतिथेय मन हो मुदित,मिले सुखद हिय शान्त॥

सदा सुखद बनना अतिथि,आतिथेय सम्मान।
खिले निमन्त्रण प्राप्ति मन,खान-पान रस भान॥

मेहमान आगम सुखद,बने सदा नवप्रीत।
सहज सरल सौहार्द्र से,रचना हो नवमीत॥

अतिथि प्रकृति पहचान हो,नव रिश्ते अनुबन्ध।
हो मिठास आभास मन,हो भविष्य सम्बन्ध॥

लखि ‘निकुंज’ मेहमान घर,मिले मधुर आनन्द।
आतिथेय अवसर सुलभ,खिला भाग्य मकरन्द॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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