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अभी उड़ान बाकी है…

कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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छू लेने दो आसमां को, अभी उड़ान बाकी है,
कहीं चूक न हो जाए अभी जहान बाकी है।

ऊँची है उड़ान, कठिन है डगर,
चलना है संभलकर अभी, अरमान बाकी है
यूँ तो लंबा है सफ़र, पर बुलंद हैं हौंसले,
रोको न मुझे तुम, अभी तो मेरे अरमान बाकी है।

आसमां की गहराई को, हम समझ नहीं पाए,
कोई भी रोको न मुझे, अभी मेरे ख्वाब बाकी हैं।

पंछी की तरह पंख लग गए हैं मेरे मन में,
रोको न मुझे तुम, अभी तो मेरी उड़ान बाकी है।

मंजिल तक पहुंचने में कहीं काँटे भी लगें हों तो,
काँटों के इस सफर में मेरी पहचान बाकी है।

कोई टोको न मुझे, अभी मंजिल पर पहुंच जाना है,
छू लेने दो आसमां को, अभी उड़ान बाकी है।

पंख फैलाए पंछियों संग अभी होड़ लगाना बाकी है,
आसमां में उड़ जाने की चाह अभी बाकी है।

यूँ न रोको मुझे अभी मेरी उड़ान बाकी है,
आसमां को छू लेने दो, अभी अरमान मेरे बाकी हैं॥

परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”