राधा गोयल
नई दिल्ली
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शीतलहर ने मारा है, और फसल को पाला मारा है
हम किस्मत के मारों का, प्रभु तू ही एक सहारा है।
दस बज गए हैं लेकिन अब तक, दिखता नहीं प्रभात
हे भगवान बताओ, कैसे ‘शीत’ से मिले निजात ?
कहने को तो दिन है, लेकिन कुछ भी नजर न आए
दिन भी अब तो रात लगे है, सबको बड़ा रुलाए।
हाथ-पाँव सब अकड़ गए हैं, जकड़ा है सर्दी ने
बर्फ के जैसा जमा दिया, इस मौसम बेदर्दी ने।
हाड़-हाड़ कँपकँपा रहे, लगता है तन में प्राण नहीं
अब अलाव सुलगाए बिना, इस शीत से कोई त्राण नहीं।
हाय ये सर्दी का प्रकोप, कैसी आफत ढाए
चल थोड़ी लकड़ियाँ बटोरें, और अलाव सुलगाएँ।
आग जलाकर चौतरफा, सब बैठ गए हैं
सुख-दु:ख की बातें, आपस में बाँट रहे हैं।
सूर्य देव से हाथ जोड़, कर रहे दुहाई
भुवन भास्कर दर्शन दे दो, छोड़ रजाई॥