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अमर जवान

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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भारत माँ का रक्षक हूँ और आग से आग बुझाता हूँ,
अपने शोणित की बूंदों से माँ की तस्वीर सजाता हूँ।

मैं चट्टानों से लड़ता हूँ और रेगिस्तान पठारों से,
बर्फीले तूफानों से भी नदिया की उठती धारों से।
सर्द गर्म मौसम से लड़ता बेरहम ठंड की रातों में,
मैं भी दूल्हा बन जाता हूँ इन टैंकों की बारातों में।
अपने जन गण मन की खातिर मैं मौत से भी लड़ जाता हूँ,
भारत माँ का रक्षक हूँ और आग से आग बुझाता हूँ॥

मैं भारत वाहिनी का नायक मुझे छंद व्याकरण नहीं आते,
मैं गीत आग के गाता हूँ मुझे काव्य अलंकरण नहीं भाते।
मैं भगत सिंह का वंशज हूँ मुझे गांधीवाद नहीं आता,
सीमा पर आग उगलता हूँ झूठा संवाद नहीं आता।
अपनी रायफल साज बनाकर वंदे मातरम गाता हूँ,
भारत माँ का रक्षक हूँ और आग से आग बुझता हूँ॥

मैं मात भवानी का अनुचर और चौकीदार शिवालय का,
मैं रण चंडी का सहचर हूँ और पहरेदार हिमालय का।
मैं शांति दूत हूँ शिव जी का मैं महाकाल का हस्ताक्षर,
मैं अमर आत्मा अमर नाथ मैं स्वयं शम्भू का बीजाक्षर।
अरि का अहंकार हरने मैं नरसिंह रूप दिखलाता हूँ,
भारत माँ का रक्षक हूँ और आग से आग बुझाता हूँ॥

मुझको गीत नहीं आते हैं बिंदिया के कुमकुम रोली के,
आतंकों के साये में क्या मैं गीत लिखूँगा होली के।
कविता बारूदी लिखता मेरे शब्दों में चिंगारी है,
नापाक,चीन दोनों से लड़ने की पूरी तैयारी है,
‘हलधर’ के शब्दों में अपने मन की ये बात सुनाता हूँ।
भारत माँ का रक्षक हूँ और आग से आग बुझाता हूँ॥

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