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अमित शाह का `हिंदी प्रेम` कितना कारगर

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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-मुद्दा सरकार की इच्छाशक्ति का……….
भारत देश में सात वार और नौ त्यौहार होते हैंl त्यौहार,पर्व,उत्सव में अर्थ होता है,उस दिन उसके महत्व को समझें और कुछ शिक्षा ग्रहण करेंl वैसे आजकल त्यौहार मनाना एक औपचारिकता बन चुकी हैl धार्मिक त्यौहार एक तरह की रस्मअदायगी,राष्ट्रीय पर्व पिकनिक मनाने का जरिया और कोई और दिवस एक प्रकार से खानापूर्ति हैl
भारत की मातृ भाषा हिंदी मानी जाती है,चूँकि देश अनेक भाषा संस्कृति को मानने वाला है और कहा जाता है दस मील में पानी और वाणी बदल जाती हैतो अनेक प्रांतों की अपनी-अपनी भाषा प्रचलन में हैl उनका गौरवशाली साहित्य,संस्कृति,परम्परा है,तो उनका स्वाभाविक प्रेम उनको अपनी भाषा से होना लाज़िमी हैl हिंदी बहुत ही बाहुल्य से प्रचलन में है और बहुत समृद्ध भाषा है और वह संस्कृत से उद्गमित हुई हैl आज हिंदी भी कई भागों में बाँट दी गयी है,जैसे- कश्मीरी,हरयाणवी,राजस्थानी,भोजपुरी,बुंदेलखंडी,बिहारी आदिl इसके अलावा हर प्रान्त की अपनी-अपनी भाषा है और वे उसको अपना स्वाभिमान मानते हैंl
आज हमारे देश का नाम इंडिया है,जबकि होना चाहिए भारतl हिन्दीकरण की शुरुआत इंडिया की जगह भारत ,भारतवर्ष,हिंदुस्तान से हो तो ठीक है,और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी की डिक्शनरी में इंडियन शब्द यानी असभ्य,जाहिल,अपढ़ और अपराधी बताया गया है,जो हमारे लिए गौरव(इंडिया) की बात हैl सबसे पहले हिन्दीकरण की बात करना है तो पहले भारत का नामकरण करें, इंडिया नहींl दूसरा हिंदी की स्वीकारता का बढ़ाना इससे नहीं होता कि,हमारे नेता ने संयुक्त राष्ट्र में एक भाषण दिया और कहने के लिए १५० देशों के विद्यालयों में यह पढ़ाई जाने लगी हैl यह अच्छी उपलब्धता है,पर हमारे देश में सर्वोच्च स्तर पर पूरा काम अंग्रेजी में होता हैl शपथ ग्रहण से लेकर संसद में पूरा काम अंग्रेजी में होता हैl यहाँ तक कि हिंदी राष्ट्रभाषा बने,इसकी वकालत भी अंग्रेजी में होती है,और विरोध भीl जब गंगोत्री ही अपवित्र है,तो गंगा कहाँ तक पवित्र होगीl
अंग्रेजी और अन्य भाषा से कोई विरोध नहीं है,पर अंग्रेजी को प्राथमिकता क्यों ? पहले अंग्रेजी को महत्व उतना मिले, जितना जरूरी है,पर हिंदी का विरोध करना एकमात्र लक्ष्य देश हित में नहीं हैl सब भाषाएँ अतुल ज्ञान का भण्डार हैं,और हिंदी,संस्कृत,उर्दू भी किसी से कम नहीं हैंl इस हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रयास १०० वर्ष पूर्व से हुआ था,पर कोई लाभ नहीं हुआ हैl ज्यों समर्थन मिलता,वैसे ही विरोध होता हैl उसका कारण सब भाषायी अपनी भाषा को प्रमुखता देते हैंl
वर्तमान अंग्रेजी सशक्त संपर्क भाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है,और उससे मुक्ति संभव नहीं है,और अन्य भाषाएँ हिंदीभाषी सीखना नहीं चाहतेl इसी प्रकार अन्य भाषी हिंदी का विरोध करते हैंl
वर्तमान सरकार सबसे पहले सर्वोच्च स्तर पर हिंदी को प्राथमिकता देकर उससे काम करेl संसद कार्यालय में हिंदी का उपयोग हो और जिस प्रकार अन्य देश जैसे-चीन,जापान,कोरिया ,रशिया आदि देश अपनी भाषा को प्रमुखता से रखते हैं,उसी प्रकार हमें भी प्राथमिकता देना होगी,अन्यथा हिंदी दिवस मनाना एक खानापूर्ति होती जाएगीl
मारीशस में हिंदी दिवस मनाया गया और उसकी जानकारी अंग्रेजी में प्रसारित की गयीl अमित शाह अपनी बात के धनी हैं,जो सोचते-बोलते हैं,उसे पूरा करते हैंl हम उनसे अपेक्षा रखते हैं कि,कितने भी झंझावात आये,पर आप दिया हुआ वचन पूरा करेंगे,ऐसी देशवासियों की इच्छा हैl आपकी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही देश ने बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लिए,जो अनुकरणीय हैंl अगले वर्ष हम यह दिन पूर्ण उत्साह से वास्तविक हिंदी दिवस के रूप में मनाएंगे,यह अभिलाषा हैl हमें पूर्ण विश्वास है कि आप और हम सफल होंगेl

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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