कुल पृष्ठ दर्शन : 260

You are currently viewing अशांति के कोहराम में हास्य अनमोल उपहार

अशांति के कोहराम में हास्य अनमोल उपहार

ललित गर्ग
दिल्ली
**************************************

अच्छे स्वास्थ्य, मानसिक शांति एवं समग्र विकास के लिए हास्य जरूरी है। इसीलिए ‘विश्व हास्य दिवस’ विश्वभर में मई महीने में मनाया जाता है। आज के तनाव, अशांत, चिन्ता एवं परेशानियों के जीवन में हास्य की तीव्र आवश्यकता है, क्योंकि हँसना सभी के भावनात्मक एवं बौद्धिक विकास में अत्यंत सहायक है। हॅंसी हमारे जीवन की सफलता की चाबी है, वह अनेक समस्याओं का समाधान भी है। हॅंसी दुखी दिल के घावों को भरने वाला मलहम है। हमारे चेहरे का व्यायाम है और मन का आराम। शोध कहते हैं कि जैसे-जैसे हम बड़े हो रहे हैं, हमारा हॅंसना कम हो रहा है। इसी पर लेखक मिशेल प्रिटचार्ड कहती हैं,-‘हम इसलिए कम नहीं हॅंसते कि हम बूढ़े हो गए हैं। हम बूढ़े ही इसलिए हुए कि हमने हॅंसना बंद कर दिया है।’
सेहत का एक मंत्र यह है कि, आप खुलकर हॅंसें। हमें हॅंसना चाहिए और बात-बेबात हॅंसते और हॅंसाते रहना सफल एवं सार्थक जीवन का मंत्र है, पर कई बार पूरा पूरा दिन बिना हॅंसे निकल जाता है। उदासी और बेचैनियों के बादल छाए रहते हैं, हॅंसी की धूप खिल नहीं पाती। लेखिका एमिली मिचेल कहती हैं, ‘हॅंसी के बिना बीता दिन, अंधेरे में रहने जैसा है, आप अपना रास्ता ढूंढ़ने की कोशिश तो करते हैं, पर उसे साफ-साफ नहीं देख पाते।’ ह
हॅंसना एक ऐसा सकारात्मक भाव है, जो व्यक्ति के न केवल आंतरिक, बल्कि बाहरी स्वरूप को समृद्धिशाली एवं प्रभावी बनाता है। हास्य एक शक्तिशाली भावना है, जिसमें व्यक्ति को ऊर्जावान और संसार को शांतिपूर्ण बनाने की क्षमता है। यह व्यक्ति के विद्युत-चुंबकीय क्षेत्र को प्रभावित करता है और व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। जब व्यक्ति समूह में हॅंसता है तो उसकी सकारात्मक ऊर्जा सम्पूर्ण परिवेश में व्याप्त हो जाती है।
आज के इस तनावपूर्ण वातावरण में व्यक्ति अपनी मुस्कुराहट व हँसी को भूलता जा रहा है, फलस्वरूप तनावजन्य बीमारियाँ जैसे- उच्च रक्तचाप, शर्करा, माइग्रेन, हिस्टीरिया, पागलपन, अवसाद आदि को निमंत्रण दे रहा है। हँसने से ऊर्जा और ऑक्सीजन का संचार अधिक होता है। शरीर में से दूषित वायु बाहर निकल जाती है। हमेशा खुलकर हँसना शरीर के सभी अवयवों को ताकतवर और पुष्ट करता है, साथ ही शरीर में रक्त संचार की गति को बढ़ाता है। इसके अलावा पाचन तंत्र अधिक कुशलता से कार्य करता है। इसलिए चिकित्सक भी हर बीमारी के रोगी के लिए हास्य को उपयोगी बताते हैं, क्योंकि जोर-जोर से कहकहे लगाने से पूरे शरीर में प्रत्येक अंग को गति मिलती है। इससे शरीर में मौजूद हार्मोन दाता प्रणाली (एंडोफ्राइन ग्रंथि) सुचारु रूप से चलने लगती है, जो कई रोगों से छुटकारा दिलाने में सहायक होती है।
जो लोग हमें हॅंसाते हैं, वे हमारी स्मृतियों में रच-बस जाते हैं। हम किसी को पसंद या नापसंद कई कारणों से कर सकते हैं, पर लंबे समय तक हमारे प्रेम के हकदार वे लोग बनते हैं, जो हमें हॅंसाते हैं और हमारे चेहरे की हॅंसी बन जाते हैं। इसीलिए विक्टर बोर्ग कहते हैं, -‘हॅंसी दो लोगों के बीच की दूरी को पार करने का सबसे छोटा पुल है।’ हॅंसना एक ऐसा बेशकीमती उपहार है, जो कुदरत ने केवल मनुष्य को ही बख्शा है। हास्य एक सार्वभौमिक भाषा है। इसमें जाति, धर्म, रंग, लिंग से परे रहकर मानवता को समन्वय करने की क्षमता है। यह इंसान से इंसान को जोड़ने का उपक्रम है। यह विचार भले ही काल्पनिक लगता हो, लेकिन लोगों में गहरा विश्वास है कि हॅंसी ही दुनिया को एकजुट कर सकती है।
दुनिया में सुख एवं दुःख दोनों ही धूप-छाँव की भाँति आते-जाते हैं। यदि मनुष्य दोनों परिस्थितियों में हँसमुख रहे तो, उसका मन सदैव काबू में रहता है व चिंता से बचा रह सकता है। हॅंसने से आत्मा खिल उठती है। इससे आप दूसरों को भी आनंदित करते हैं। हास-परिहास पीड़ा का दुश्मन है, निराशा और चिंता का अचूक इलाज और दुःखों के लिए रामबाण औषधि है।
प्रमुख विद्वान थैकर एवं शेक्सपियर जैसे विचारकों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि प्रसन्नचित व्यक्ति अधिक जीता है। मनुष्य की आत्मा की संतुष्टि, शारीरिक स्वस्थता व बुद्धि की स्थिरता को नापने का एक पैमाना है और वह है चेहरे पर खिली प्रसन्नता।
जापान में भगवान बुद्ध के शिष्य थे होतेई। वह बड़े अलमस्त स्वभाव के भिक्षुक थे। वह बेहद निर्लिप्त और निरपेक्ष भाव से जीवन जीने में विश्वास रखते थे। वह जिस कार्य को करते, उसमें पूरी तरह डूब जाते थे, तन्मय हो जाते। जापान में ऐसी मान्यता है कि एक बार होतेई ध्यान करते-करते इतने रोमांचित हो गए कि ध्यानावस्था में जोर-जोर से हॅंसने लगे। इस अद्भुत घटना के उपरांत ही लोग उन्हें ‘लाफिंग बुद्धा’ के नाम से संबोधित करने लगे। चीन में ‘लाफिंग बुद्धा’ को पुताई के नाम से भी जाना जाता है। चीनी लोग उन्हें एक ऐसे भिक्षुक के नजरिए से देखते हैं, जो एक हाथ में धन-धान्य का थैला लिए, चेहरे पर खिलखिलाहट बिखेरे अपना बड़ा पेट और थुल-थुल बदन दिखाकर सभी को हॅंसाते हुए सकारात्मक ऊर्जा देते हैं। वे समृद्धि व खुशहाली का संदेशवाहक और घरों के वास्तुदोष निवारण का प्रतीक भी माने जाते हैं। जापान जैसे देशों में लोग अपने बच्चों को प्रारंभ से ही हँसते रहने की शिक्षा देते हैं, ताकि उनकी भावी पीढ़ी सक्षम एवं तेजस्वी हो।
दुनिया के अधिकतर देश आतंकवाद के डर से सहमे हुए हैं, ऐसे समय में ‘विश्व हास्य दिवस’ की अत्यधिक आवश्यकता महसूस होती है। आज हर व्यक्ति के अंदर घबराहट और अशांति का कोहराम मचा हुआ है। ऐसे दौर में केवल हॅंसी ही दुनियाभर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकती है।
चिकित्सा प्रयोगों में पाया गया है कि, १० मिनट तक हॅंसते रहने से २ घंटे की गहरी नींद आती है।
हॅंसने वाले व्यक्तियों के कई सारे मित्र बन जाते हैं और इस प्रकार उनमें भाईचारा और एकता की भावना कब उत्पन्न होती है, पता ही नहीं चलता। इसलिए इस व्यस्त, अशांत एवं तनावग्रस्त जिंदगी में कम से कम १ दिन तो अपने लिए निकालें और जी भरकर हॅंसे और हॅंसाएं।

Leave a Reply