जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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मुखौटे का कोई सानी नहीं है।
सही औकात पहचानी नहीं है।
जुबां पर राम के गाने बसे थे,
उसी की आँख में पानी नहीं है।
खरी-खोटी हमारी क्यों सुनेगा,
जवानी लौटकर आनी नहीं है।
निगाहों में न देखी शर्म मैंने,
जरा सी सिकन पेशानी नहीं है।
जमाने से भला वो भी डरे क्यों,
किसी ने इश्क में मानी नहीं है।
फँसी बुलबुल अभी रंगीनियों में,
शिकारी यार को जानी नहीं है।
उसे कच्ची निकाली मय न मानो,
जलोटा ने अभी छानी नहीं है।
पुराना खेल दुहराए जमाना,
कयामत तो अभी आनी नहीं है॥