हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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आओ बसन्त, गाओ बसन्त, तुम नई रीत के नवीन तराने
फूलो, खिलो, घुलो-मिलो, लगाओ न कोई हीले-बहाने।
आओ बसन्त, गाओ बसन्त, तुम नई रीत के नवीन तराने…।
दिवस गए कई, मास गए कई, गुजरेंगे साल और जमाने
सुवासित पवनें, मादक श्वाँसें, भँवर दल भी लगे गुनगुनाने।
आओ बसन्त, गाओ बसन्त, तुम नई रीत के नवीन तराने…।
पुलकित धारा हो, सब हरा- भरा हो,
खग कुल लगे चहचहाने
बरसो बदरा, धराधर के तुम, आओ चातक की प्यास बुझाने।
आओ बसन्त, गाओ बसन्त, तुम नई रीत के नवीन तराने…।
जाड़े की जद से, सर्दी की हद से,
आओ बसन्त तुम बचाने
ले कर निज पावन फुहारें, आओ सिहरी धारा को पुनः नहाने।
आओ बसन्त, गाओ बसन्त, तुम नई रीत के नवीन तराने…॥