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आओ हे गुरुवर

ममता बनर्जी मंजरी
दुर्गापुर(पश्चिम बंगाल)
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दोहा-
आओ हे गुरुवर बसो,मन मंदिर में आज।
बिन तेरे संसार में,बिगड़े सारे काज॥

रोला-
बिगड़ै सारे काज,समझ में कछु नहिं आवै।
मन में दु:ख संताप,सदा ही बढ़ता जावै॥
कहती ‘ममता’ नाथ,दया के हाथ बढ़ाओ।
हर लो सब संताप,दया निधि गुरुवर आओ॥

कुंडलिनी-
आओ हे गुरुवर बसो,मन मंदिर में आज।
बिन तेरे संसार में,बिगड़े सारे काज॥
बिगड़े सारे काज,दया के हाथ बढ़ाओ।
हर लो सब संताप,दयानिधि गुरुवर आओ॥

कुंडलिया-
आओ हे गुरुवर बसो,मन मंदिर में आज।
बिन तेरे संसार में,बिगड़े सारे काज॥
बिगड़े सारे काज,समझ में कछु नहिं आवै।
मन में दु:ख संताप,सदा ही बढ़ता जावै॥
कहती ‘ममता’ नाथ,दया के हाथ बढ़ाओ।
हर लो सब संताप,दयानिधि गुरुवर आओ॥

सोरठा-
मन मंदिर में आज,आओ हे गुरुवर बसो।
बिगड़े सारे काज,बिन तेरे संसार में।

चौपाई-
मन मंदिर में गुरुवर आओ।
परम कृपा हम पे बरसाओ॥

मैं दासी हूँ भोली-भाली।
विद्याधन से भर दो झोली॥

हम आए हैं शरण तुम्हारे।
आओ मेरे गुरुवर प्यारे॥

अंध तमस में दीप जलाओ।
नाता मुझसे आज निभाओ॥

तुम दीनन के पालनहारा।
दे दो मुझको आज सहारा॥

मेरी किस्मत आज सँवारो।
भव सागर से पार उतारो॥

परम दयामय गुरुवर प्यारे।
ज्योत जलाओ मन के द्वारे॥

परिचय-ममता बनर्जी का साहित्यिक उपनाम `मंजरी` हैl आपकी जन्मतिथि २१ मार्च १९७० एवं जन्म स्थान-इचाक,हज़ारीबाग (झारखण्ड) हैl वर्तमान पता-गिरिडीह (झारखण्ड)और स्थाई निवास दुर्गापुर(पश्चिम बंगाल) हैl राज्य झारखण्ड से नाता रखने वाली ममता जी ने स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की हैl आप सामाजिक गतिविधि में कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़कर नियमित साहित्य सृजन में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल,लेख सहित साहित्य के लगभग सभी विधाओं में लेखन हैl झारखण्ड के झरोखे से(२०११) किताब आ चुकी है तो रचनाओं का प्रकाशन अखबारों सहित अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं में भी हो चुका हैl आपको साहित्य शिरोमणि, किशोरी देवी सम्मान,अपराजिता सम्मान सहित पूर्वोत्तर विशेष सम्मान और पार्श्व साहित्य सम्मान आदि मिल चुके हैंl विशेष उपलब्धि में झारखण्ड प्रदेश में एक साहित्य संस्था का अध्यक्ष होना और अन्य में भी पदाधिकारी होना हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी को आगे बढ़ाना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-झारखण्ड का परिवेश हैl आपकी विशेषज्ञता-छंदबद्ध कविता लेखन में हैl

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