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कितने हो निर्लज्ज बताओ…

प्रियांशु तिवारी ‘सागर’
कटनी(मध्यप्रदेश)
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जब बंटवारा हुआ देश का,पूरा भारत रोया था,
कुछ लोगों की नाकामी पर रात-रात न सोया थाl

दिन का चैन-रात की नींदें छीन विदेशी चले गये,
और हमारे भारत के नेता जी सारे छले गयेl

चले गये अंग्रेज़ी लेकिन अपना भारत तोड़ गये,
जाते-जाते इस भारत में धर्मवाद वो छोड़ गयेl

फिर भी सब कुछ सहकर हमने अपना देश संभाला था,
तब भारत में खुशियाँ आई,चारों ओर उजाला थाl

लेकिन कुछ देशों को ये सब बिल्कुल भी न भाता था,
जिनका इस भारत से न कोई दूर-दूर का नाता थाl

न जाने क्यों चिड़ते थे वो,क्यों भारत से डरते थे,
न जाने क्यों इस भारत से इतनी नफरत करते थेl

हम सब भारतवासी लेकिन घोर अहिंसावादी थे,
हम सब भारतवासी केवल अमन-चैन के आदी थेl

लेकिन उस ना-पाकी ने बस युद्ध-युद्ध का जाप किया,
हार गये तो खूब ढिंढोरा पीटा और अलाप कियाl

मौके बहुत मिले हमको,हम काम खतम कर सकते थे,
और तुम्हारा मानचित्र से नाम खतम कर सकते थेl

लेकिन हमने सोचा मसला बातचीत से हल हो जाये,
जहर तुम्हारे अन्दर है जो सारा गंगाजल हो जायेl

कई दौर की बैठक की पर कोई परिणाम नहीं आया,
और कोई भी समझौता हम सबके काम नहीं आयाl

लेकिन हम खुद दोषी थे,क्यों क्षमादान दे देते थे,
खुद के मन को मार हमेशा उन्हें उड़ान दे देते थेl

काश्मीर है मुकुट हमारा,भारत माँ की धड़कन है,
मत उसमें तुम नजर फिराओ,हम लोगों का जीवन हैl

तुमने हमसे तीन बार थे युद्ध लड़े और हार गये,
और तुम्हारे तोप बम टैंक सभी बेकार गयेl

बार-बार की हार झेलते शर्म नहीं आती तुमको,
कितने हो निर्लज्ज बताओ बेशर्मी भाती तुमकोl

हमने तुमको कारगिल में बेटा सबक सिखाया था,
कैसे युद्ध लड़ा जाता है,तुमको यह बतलाया थाl

बेटा तुमको दो भागों में तोड़ दिया था हमने,
और तुम्हारे सर में पत्थर फोड़ दिया था हमनेl

सुन लो बेटा,शेर हमारे सीमाओं में रहते हैं,
कभी धूप तो कभी छांव,वो बरसात को सहते हैंl

तेरा उनसे टकरा पाना मुश्किल लगता है मुझको,
तेरा जंग से वापस आना मुश्किल लगता है मुझकोl

बार-बार तुम हाथ फैलाते हो अच्छा लगता है क्या,
बार-बार तुम शीश हो झुकाते,अच्छा लगता है क्याl

इसीलिए कहता हूँ तुमसे खुद पर एक उपकार करो,
भारत के चरणों में गिरकर गलती को स्वीकार करोl

युद्ध हमेशा दो देशों को पीछे ही ले जाता है,
बेमतलब में हंगामे और घाव बहुत दे जाता हैl

लेकिन तुम नासूर देश हो बार-बार के हारे हो,
थोड़ा पागल थोड़ा सनकी बेटा बहुत नकारे होl

लेकिन सुन लो जिस दिन बेटा हम पागल हो जायेंगे,
कूट-कूट कर मारेंगें और नानी याद दिलायेंगेl

गर तुमने ये युद्ध छोड़कर खुद पर ध्यान दिया होता,
भूख गरीबी से न मरते,गर उत्थान किया होताl

लेकिन तुमने अपनी सारी मर्यादा ही त्यागी थी,
और तुम्हारे देश की जनता बेबस थी अभागी थी॥

परिचय-प्रियांशु तिवारी का साहित्यिक उपनाम `सागर` हैl आप जिला कटनी(राज्य मध्यप्रदेश)में रहते हैंl आपकी लेखन विधा-गीत,मुक्तक( ओज रस)हैl आपको कविताएँ लिखना  बेहद पसंद हैl 

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