कुल पृष्ठ दर्शन : 237

आखिर क्यों जरूरी है हमें चौकीदार बनना …?

दिनेश पाठक 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
*******************************************************************
अर्जुन का गांडीव बनूँ या,खुद गीता का सार बनूँ मैं ?
कलम उठाकर वार करूं या,शब्द-शब्द अँगार बनूँ मैं ?

मातृभूमि के चरणों की रज,ममता की रसधार बनूँ मैं ?
हार-जीत का बनूँ कभी या ,खुशियों का त्यौहार बनूँ मैं ?

कवि हूँ तो क्या कविताओं का,खुद अंधा रुजगार बनूँ मैं ?
छलियों के छल से निपटूं या,मिथ्या शिष्टाचार बनूँ मैं ?

राजनीति की गोट बनूँ या,वोट बैंक हर बार बनूँ मैं ?
नारी को लजवाते ‘आजम’,की खुस्सन सलवार बनूँ मैं ?

खुद बीमार बनूँ सत्ता का,या उसका उपचार बनूँ मैं ?
मोटी चमड़ी के नेताओं,जैसा क्या मक्कार बनूँ मैं ?

देश धर्म का द्रोही होकर,आतंकी हथियार बनूँ मैं ?
या फिर हाफिज दाऊद अजहर,ओवैसी का यार बनूँ ?

देश धर्म को गाली देने,वालों-सा गद्दार बनूँ मैं ?
आँख कान मुँह बंद रखे जो,ऐसा क्या ‘सरदार’ बनूँ मैं ?

पीढ़ी दर पीढ़ी शोषक या,शासक का परिवार बनूँ मैं ?
दुर्योधन की ध्यूत सभा का,दरबारी लाचार बनूँ मैं ?

ये सब काला-पीला करके,धरती पर धिक्कार बनूँ मैं !
इससे अच्छा है भारत का ,चौकस ‘चौकीदार’ बनूँ में॥

परिचय-इंदौर निवासी दिनेश पाठक की जन्मतिथि १५ अप्रैल १९६५ और जन्म स्थान-ग्रा.भिलाड़िया घाट होशंगाबाद(म.प्र.) हैl वर्तमान पता मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित ब्रम्ह बाग़ कालोनी हैl आपकी पूर्ण शिक्षा व्यवसाय प्रबन्ध में स्नातकोत्तर है,जबकि कार्यक्षेत्र जीवन बीमा में हैl श्री पाठक सामाजिक गतिविधि में समाजसेवा के साथ ही अभा कवि सम्मेलन का संयोजन एवं मंच संचालन भी करते हैंl आपकी लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल,छंद,कविता,कहानी और नाटक लेखन हैl आप पठन-पाठन एवं कवि सम्मेलन के लिए सक्रिय रहते हैंl प्रकाशन में गजल संग्रह-`उम्र के अस्तर` प्रकाशन प्रक्रिया में हैl अनेक पत्र-पत्रिकाओं में स्तम्भ एवं नियमित लेखन के रुप में आपकी रचनाएं छपती रहती हैंl आपको प्राप्त सम्मान में दैनिक अख़बार द्वारा `ठिठौली २००० सहित कविराज सम्मान(भोपाल)और अन्य हैंl आपकी विशेष उपलब्धि हास्य और ओज दोनों विधाओं में घनाक्षरी छंद लेखन एवं पाठन में विशेष दक्षता हैl श्री पाठक अभी तक ८०० छंद रच चुके हैं,जो मंचीय होकर भी साहित्यिक मापदंडों पर खरे हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-राष्ट्र जागरण करना धर्म हमारा हैl