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आजादी…और कहां तक गिरना है ?

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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न हम हिन्दू न हम मुस्लिम,
और न सिख ईसाई हैं
हिंदुस्तान में जन्म लिया है तो,
पहले हम हिंदुस्तानी हैं
आजादी की जंग में,
इन सबने जान गंवाई थी
तब जाकर हमको ये,
आजादी मिल पाई थी
कैसे भूलें उन सबको,
वो भी हमारे बेटे थे।

पर भारत माँ अब बेबस है,
और अंदर ही अंदर रोती है
अपने ही बेटों की करनी पर,
खून के आँसू पीती है
धर्म निरपेक्ष देश हम,
सबने मिलकर बनाया था
पुनः खण्ड-खण्ड कर डाला,
अपने देश के बेटों ने
क्या हाल बना दिया,
अपनी भारत माँ का अब।

कितनी लज्जा कितनी शर्म,
आ रही है अपने बेटों पर
भारत माँ रोती रहती,
एक कोने में बैठकर
क्या ये सब करने के लिए,
ही हमने आजादी पाई है 
और धूमिल कर डाला,
आजादी के उन सपनों कोऔर मजबूर कर दिया,
अपनों की लाशों पर रोने को।

चले कहाँ से थे हम,
कहाँ तक आ पहुंचे
और कहां तक गिरना है,
तुम बतला दो बेटों अब
भारत माँ के बेटों को,
क्या बेटों के हाथों मरना है
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जो भाइयों को लड़वाती है
नहीं चाहिए ऐसी आजादी,
जो आपस में लड़वाती है
और मरे कोई भी दंगों में,
पर माँ को ही रोना पड़ता है।
और औलादों की करनी पर,
शर्मिंदा होना पड़ता है॥

परिचय– संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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