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बहन की चिट्ठी

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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रक्षाबंधन विशेष……

भैया तुम सरहद पर रहकर तम दूर करो,
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी।

लगता है दुनिया में ईमान खो गया है,
फूलों का रंगीला परिधान खो गया है।
तुम सीमा पर संगीनों से इतिहास लिखो,
मैं घर पर रह घर का भूगोल सजाऊंगी॥
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी…

बढ़ रही वेबसी गाँव गली चौबारों में,
पशुता नंगी हो नाच रही बाजारों में।
मैं गाकर दीपक राग जगा दूंगी मुर्दे,
खुद के सक्षम होने का अर्थ बताऊंगी॥
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी…

रो रही सभ्यता साहित्यिक रथ रुका हुआ,
हो रहे कृत्य विध्वंस सृजन है थका हुआ।
लुट रही द्रोपदी नग्न खड़ी चौराहों पर,
मैं माधव बन कर उसकी लाज बचाऊंगी॥
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी…

कुछ रोग लगा भारत उपवन की काया में,
दु:ख नाच रहा रोगी कलियों की छाया में।
तुम तोपों के संग सावन घन जैसे वर्षों,
मैं भी तलवारों से मल्हार गवाऊंगी॥
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी…

अब स्वयं उतरना होगा अपनी रक्षा में,
दानव घुस कर बैठे सामाजिक कक्षा में।
तट पर रहकर उपचार असंभव है ‘हलधर’,
लहरों से टकराकर ही नाव चलाऊंगी॥
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी…

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