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आज मन विकल

सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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आज मन मेरा विकल,
करती सृजन इस आस में
हो अगर यदि साथ मेरे,
प्रकट हो प्रतिभास में।

गूँजती बस एक ही ध्वनि,
निज हृदय की प्यास में
एक ही स्वर कर रहा,
झंकार मेरी श्वाँस में।

जिनको रंजित किया तुमने,
मिलन के अनुराग से
चित्र अंकित किए हमने,
विगत के मधुमास से।

पा लिया मैंने नया कुछ,
वेदना की मधुर लय में।
अनुसरण करती निरंतर,
खो गया जो कहीं मय में॥