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आम आदमी की समस्याओं को उकेरा `सवालों की दुनिया` ने

डाॅ.आशा सिंह सिकरवार
अहमदाबाद (गुजरात ) 
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सवालों की दुनिया ग़ज़ल संग्रह वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण बक्षी का है। विगत पाँच दशक से निरन्तर नवगीत और ग़ज़ल लिख रहे इस संग्रह में आपने आम आदमी की समस्याओं को व्यापक तौर पर उकेरा है,जिसके मूल में देश की वास्तविक परिस्थितियों को केन्द्र में रखकर ग़ज़लें लिखीं गई हैं। भूख,गरीबी,अभाव और बेरोजगारी जैसी सच्चाइयों को उभारा गया है। शेर देखिए-
“जो सट्टे,जुएँ या हवालों की दुनिया,
है चाचा,भतीजे ओ’ सालों की दुनियाl” (पृष्ठ-११)

“जगेगी तो मांगेगी उत्तर वो तय है,
जो सोई है मुझमें,सवालों की दुनियाl”( पृष्ठ-११)
एक अरसे से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही राजनीति सत्ता पर करारा व्यंग्य है। दूसरा शेर इसी परिवेश में जन्मे अनन्त प्रश्नों के उत्तर खोजता है। आने वाला वक्त खामोश नहीं रहेगा। मौजूद लोगों से पूछेगा अर्थात् चुप्पी को तोड़ ने का आगाज़ करता है। बक्षी जी ने अपनी गज़लों में जनवादी विचारधारा के कारण राजनीतिक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाये हैं। कुछ शेर उद्धत हैं-
“बँटा मुल्क तो आई हिस्से में अपने,
ये झगड़े ये टंटे-बवालों की दुनियाl” (पृष्ठ-११)

“युग गये बीत अब भी वही के वही,
जात-पातों के झगड़े चले आ रहेl” (पृष्ठ-४७)

“मूल पूंजी में जोड़े गये ब्याज पर,
बही खातों के झगड़े चले आ रहे हैंl” (पृष्ठ-४७)

“मेरी दुखती हुई देह से आज तक,
घूस लातों के झगड़े चले आ रहेl” (पृष्ठ-४७)
स्वतंत्रता के बाद देश में जिन राजनीति परिस्थितियों ने जन्म लिया उसमें धार्मिक जातिवाद को जन्म दिया,आम आदमी की मूलभूत समस्याएँ जस की तस रहीl आजादी के जो सपने देखे थे,वे चूर-चूर हो गए। जातिगत लड़ाईयाँ के चलते आम आदमी को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ा। देश उनका खामियाजा भुगत रहा है। हम आज तक उभर नहीं पाए हैं। बक्षी जी इन मुद्दों को उठाने में सफल रहे हैं। किसानों की जमीन जाती रही। सूत पे सूत चढ़ता गया,जमीन हथिया ली गईl साज़िशों को पर्दाफाश करती यह पंक्तियाँ यहाँ गहन अभिव्यक्ति देती हैं। रचनाकार अपने समय से साथ बहुत गहराई से जुड़ा है।
आम आदमी की संवेदना को झकझोर कर रखा है,उस पर शेर प्रस्तुत है-
“मालूम हमें इतना भी है,इस बार भी बाजी उनकी है,
इस बार भी वो ही जीतेंगे,हम ही तो हराये जायेंगेl” (पृष्ठ-४७)
बक्षी जी आम-आदमी की संवेदना से गहराई से जुड़ते हैं, इसलिए वे जानते हैं चाहे कोई भी सरकार रहे केन्द्र में,आम आदमी की स्थिति नहीं बदलती। रोटी,कपड़ा और मकान की जद्दोजहद करते हुए संपूर्ण जीवन संघर्ष में बीत जाता है।
“हम ही तो हराये जायेंगे” में अदभुत सृजन दृष्टि का परिचय मिलता हैl सत्ता पर कोई भी हो,हार तो सिर्फ आम आदमी की होती है। उससे वादे तो किए जाते हैं,परंतु पूरे नहीं होते। राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि का मिला-जुला रूप प्रस्तुत है इस शेर में-
“जाल नदियों में बिछाने की क़वायद हो रही है,
मछलियों को फिर फँसाने की क़वायद हो रही हैl” (पृष्ठ-५०)
मछलियाँ जो जिजीविषा का प्रतीक है,संकेतों में व्यापक स्तर पर हो रही साज़िश का पर्दाफाश करते हैं।
वर्तमान समय से उपजी भयावहता से ग़ज़लकार वाकिफ़ है,इसलिए बहुत कुछ बचाने के लिए प्रयत्नशील भी हैl शेर देखिए-
“वो जो बरसों से चली आई है रिश्तों की हमारे,
परम्परा जड़ से मिटाने की क़वायद हो रही हैl” (पृष्ठ-५०)
बक्षी जी ने बार-बार आम आदमी की चुप्पी को झकझोर कर जगाने का प्रयास किया है-
“दूर तक शब-ही-शब देखिए,
जो तबाह कर गया बस्तियाँl
उस नशे की तलब देखिये(पृष्ठ-५१)
मध्यम वर्ग की विडम्बना को लक्ष्य करते हुए वे उस ओर भी देखते हैं,जिसमें बुद्धिजीवी वर्ग आम आदमी के संघर्ष में कदम पर कदम साथ रहता है,पर कवि का हृदय पीड़ा से भर आता है,यह सोच कर कि आम-आदमी अपनी दुनिया में रचा-बसा रहता है। बक्षी जी ने बखूबी कवि संघर्ष की ओर भी ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास किया है। यह शेर देखिए-
“मुख्तसर-सी ज़मीं,मुख्तसर आसमां,
उसपे इतना घना,ये धुआँ,ये धुआँl”
बक्षी जी अपनी ग़ज़लों में मध्यमवर्गीय की चेतना को झकझोरने के लिए व्यंग्य का सार्थक प्रयोग करते हैं। वे निरन्तर कदम-कदम पर साहसिकता का परिचय देते हैंl
“जिनको होता ना,ख़ौफ लहरों का,
सिर्फ पानी में वो उतरते हैंl” (पृष्ठ-८९)
अनेक स्थलों पर वे जनजीवन को एक लड़ाई के लिए तैयार करते दिखते हैं। अंधकार और रोशनी की लड़ाई जो युगों-युगों से चली आ रही है,उसी का प्रतिनिधित्व करते दिखाई पड़ते हैं। प्रतीकों के चयन से ही हमें उनकी व्यापक संवेदना का पता चलता है,जैसे-अंधकार,रोशनी,आकाश,परिंदे,पेड़,महल,पंछी,दरिया और भेड़ आदि।बिंब देखिए-झंझावत,शहतीर,धूप एवं तितलियाँ। उनकी भाषा सहज संवेदनात्मक भाषा हैl जिस परम्परा को दुष्यंत कुमार ने आरंभ किया था,उसी में एक और कड़ी जुड़ती है। अरबी-फारसी(उर्दू)के उन्हीं शब्दों का प्रयोग किया है,जो सहज अर्थ का उदघाटन करते हैं। पाठक भाषा में कहीं उलझकर नहीं रहता। यही उनकी ग़ज़लों की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
“अंधेरों में मच जायेगी,खलबली-सी,
बना के तो देखो,उजालों की दुनियाl

“बँटा मुल्क तो आई हिस्से में अपने,
ये झगड़े ये टंटे,बवालों की दुनियाl” (पृष्ठ-११)

बैनर मिलेंगे टोपियाँ,झंडे,हरेक क़ौम के,
काफ़ी सजी ये राजनीति की दुकान हैl(पृष्ठ-८८)
आपने सम-सामयिक राजनीति परिस्थितियों का चित्रण किया है। श्री बक्षी ने दबे स्वर में आज की मूल समस्या पर भी लेखनी चलाई है,सांप्रदायिक और जातिवाद का मुद्दा उठाया है।
ग़ज़ल केवल महबूब के बातचीत से परे तत्कालीन परिस्थितियों पर केन्द्रित है। राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक,पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध खड़ी बेहद प्रेरणात्मक ग़ज़लें हैं। यह हिन्दी साहित्य में अमिट छाप छोड़ती हैं। गहरे स्तर पर भाव देश की समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं,चाहे फिर वह देश का किसान और उसकी आत्महत्या से जुड़े हों,या गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे करोड़ों लोगों की रोटी,कपड़ा और मकान की समस्या हो। जनजीवन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को उल्लेखित करते हैं। यह ग़ज़ल संग्रह भविष्य के प्रति आश्वस्त करता है। बक्षी जी सकारात्मक मूल्यों की स्थापना के लिए अपनी लड़ाई मुकम्मल करते दिखाई पड़ते हैं। हिन्दी ग़ज़ल के लिए एक जमीन तैयार की है,यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी। बक्षी जी आगे भी इसी प्रकार हिन्दी ग़ज़ल को समृद्ध करते रहेंगे।

परिचयडाॅ.आशासिंह सिकरवार का निवास गुजरात राज्य के अहमदाबाद में है। जन्म १ मई १९७६ को अहमदाबाद में हुआ है। जालौन (उत्तर-प्रदेश)की मूल निवासी डॉ. सिकरवार की शिक्षा- एम.ए.,एम. फिल.(हिन्दी साहित्य)एवं पी.एच.-डी. है। आलोचनात्मक पुस्तकें-समकालीन कविता के परिप्रेक्ष्य में चंद्रकांत देवताले की कविताएँ,उदयप्रकाश की कविता और बारिश में भीगते बच्चे एवं आग कुछ नहीं बोलती (सभी २०१७) प्रकाशित हैं। आपको हिन्दी, गुजराती एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। आपकी कलम से गुजरात के वरिष्ठ साहित्यकार रघुवीर चौधरी के उपन्यास ‘विजय बाहुबली’ का हिन्दी अनुवाद शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। प्रेरणापुंज-बाबा रामदरश मिश्र, गुरूदेव रघुवीर चौधरी,गुरूदेव श्रीराम त्रिपाठी,गुरूमाता रंजना अरगड़े तथा गुरूदेव भगवानदास जैन हैं। आशा जी की लेखनी का उद्देश्य-समकालीन काव्य जगत में अपना योगदान एवं साहित्य को समृद्ध करने हेतु बहुमुखी लेखनी द्वारा समाज को सुन्दर एवं सुखमय बनाकर कमजोर वर्ग के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और मूल संवेदना को अभिव्यक्त करना है। लेखन विधा-कविता,कहानी,ग़ज़ल,समीक्षा लेख, शोध-पत्र है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित और आकाशवाणी से भी प्रसारित हैं। काव्य संकलन में आपके नाम-झरना निर्झर देवसुधा,गंगोत्री,मन की आवाज, गंगाजल,कवलनयन,कुंदनकलश,
अनुसंधान,शुभप्रभात,कलमधारा,प्रथम कावेरी इत्यादि हैं। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको-भारतीय राष्ट्र रत्न गौरव पुरस्कार(पुणे),किशोरकावरा पुरस्कार (अहमदाबाद),अम्बाशंकर नागर पुरस्कार(अहमदाबाद),महादेवी वर्मा सम्मान(उत्तराखंड)और देवसुधा रत्न अलंकरण (उत्तराखंड)सहित देशभर से अनेक सम्मान मिले हैं। पसंदीदा लेख़क-अनामिका जी, कात्यायनी जी,कृष्णा सोबती,चित्रा मुदगल,मृदुला गर्ग,उदय प्रकाश, चंद्रकांत देवताले और रामदरश मिश्र आदि हैं। आपकी सम्प्रति-स्वतंत्र लेखन है।

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