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‘आयकर’ की जगह ‘जायकर’ क्यों नहीं ?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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हमारे देश में आय कर फार्म भरने वालों की संख्या ७ करोड़ के आस-पास है, लेकिन उनमें से मुश्किल से ३ करोड़ लोग कर भरते हैं। क्या भारत-जैसे १४० करोड़ के देश में ढाई-तीन करोड़ लोग ही इस लायक हैं कि, सरकार उनसे कर वसूल सकती है ? क्या ये ढाई-तीन करोड़ लोग भी अपना कर पूरी ईमानदारी से चुकाते हैं ? नहीं, बिल्कुल नहीं! ईमानदारी से पूरा कर चुकानेवाले लोगों को ढूंढ निकालना लगभग असंभव है, याने जो कर भरते हैं, वे भी कर-चोरी करते हैं। जो नहीं भरते हैं और जो भरते हैं, वे सब चोर बना दिए जाते हैं। हमारी कर व्यवस्था ऐसी है कि जो हर नागरिक को चोर बनने पर मजबूर कर देती है। हर मोटी आमदनी वाला मालदार आदमी ऐसे चार्टर्ड एकाउंट की शरण लेता है, जो उसे कर चोेरी के नए-नए गुर सिखाता है। इस सच्चाई को यदि हमारी सरकारें स्वीकार कर लें तो भारत में कर-व्यवस्था में इतना सुधार हो सकता है कि कम से कम ३० करोड़ लोग कर भरने लगें। देश में ३०-४० करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें हम मध्यम श्रेणी का मानते हैं। हर मध्यम श्रेणी का नागरिक कर देना चाहेगा, लेकिन यदि वह आयकर १०-१५ प्रतिशत से शुरु होगा तो उसका पेट भरना भी मुश्किल हो जाएगा। इसकी बजाय आयकर का प्रतिशत एकदम घटा दिया जाए तो इतने ज्यादा लोग भरने लगेंगे कि वह ११ लाख करोड़ रू. से कहीं डेढ़ा-दुगुना हो सकता है। लोगों में जिम्मेदारी का भाव भी पैदा होगा और सरकार की जवाबदेही भी बढ़ेगी। आम आदमी पर हमारी नौकरशाही का रोब-दाब भी घटेगा। कई देश ऐसे हैं, जिनमें आमदनी पर कोई कर ही नहीं लगता। ‘आयकर’ को खत्म किया जाए और उसकी जगह ‘जायकर’ लगाया जाए याने आमदनी पर नहीं, खर्च पर कर लगाया जाए। इसके कई फायदे होंगे। पहला तो यही कि कर-चोरी की आदत पर लगाम लगेगी। दूसरा, लोगों के खर्च घटेंगे। उपभोक्तावाद और फिजूलखर्ची घटेगी और बचत बढ़ेगी। तीसरा, आयकर विभाग बंद होगा, जिससे सरकार का करोड़ों रूपया बर्बाद होने से बचेगा। चौथा, नागरिकों का सिरदर्द घटेगा। पांचवां, डिजिटल व्यवस्था के कारण हर खरीदी पर उपभोक्ता का कर तत्काल कट जाएगा। अभी कर-चेारी के बावजूद अकेले गुड़गांव में विभिन्न कंपनियों पर १३ हजार करोड़ रु. का आयकर बक़ाया है। पूरे भारत में इस साल सिर्फ ११ लाख ३५ हजार करोड़ रू. का आयकर वसूला गया है, लेकिन इससे कई गुना ज्यादा पैसा चोरी हुआ है और बक़ाया है। यदि आयकर घटे या खत्म हो तो सरकार की आमदनी बढ़ेगी और लोगों को भी राहत मिलेगी।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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