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आज़ादी के परवानों का सम्मान करो…

क्रिश बिस्वाल
नवी मुंबई(महाराष्ट्र)
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युग बदल गया और फ़िर चरखे का चक्र चला,
फ़िर काला शासन ढकने चला श्वेत खादी।
खूंखार शासकों की खूनी तलवारों से,
बापू ने हँस कर मांगी अपनी आजादी।
जो चरण चल पड़े आजादी की राहों पर,
वो रुके न क्षणभर,धूप,धुआं,अंगारों से
उठ गया तिरंगा एक बार जिसके कर में,
वो झुका न तिल भर गोली की बौछारों से।
इसीलिए ध्वजा पर पुष्प चढ़ाने से पहले,
तुम शीश चढ़ने वालों का सम्मान करो।
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए,
आजादी के परवानों का सम्मान करो…॥

कितने बिस्मिल,आजाद सरीखे सेनानी,
इस पुण्य पर्व से पहले ही बलिदान हुए।
जब अवध और झाँसी पे थे गोले बरसे,
तो मन्दिर,मस्जिद साथ-साथ वीरान हुए।
जलियांबाग में जिनका नरसंहार हुआ,
वो इसी तिरंगे को फहराने आए थे।
जिनके प्रदीप बुझ गए गए अधूरी पूजा में,
वो इसी निशा में ज्योत जलाने आए थे।
तलवार उठाने से पहले तुम इसीलिए,
मिट जाने वालों का गौरव गान करो।
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए,
आजादी के परवानों का सम्मान करो…॥

दलितों को मिला स्वराज्य इसी स्वर्णिम क्षण में,
सदियों से खोया भारत ने गौरव पाया।
कट गई इसी दिन माँ की लौह श्रृंखलाएं,
पीड़ित जनता ने फ़िर से सिंहासन पाया।
१५ अगस्त है नेता जी का मधुर स्वप्न,
बापू के अमर दीप की गायक वीणा है।
अंधियारे भारत का ये है सौभाग्य सूर्य,
माँ के माथे का सुंदर श्याम नगीना है।
इसलिए आज मन्दिर जाने से पहले,
तुम राष्ट्र ध्वज के नीचे जन गन गान करो।
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए,
आजादी के परवानों का सम्मान करो…॥

परिचय-क्रिष बिस्वाल का साहित्यिक नाम `ओस` है। निवास महाराष्ट्र राज्य के जिला थाने स्थित शहर नवी मुंबई में है। जन्म १८ अगस्त २००६ में मुंबई में हुआ है। मुंबई स्थित अशासकीय विद्यालय में अध्ययनरत क्रिष की लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति की भावना को विकसित करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैं। काव्य लेखन इनका शौक है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।’

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