डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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पहन लिया कुर्ता-पैजामा,
दूल्हा बन गए बंदर मामा।
आ गए उसके संगी-साथी,
खरगोश भालू शेर हाथी।
बिल्ली मौसी भी आईं,
देखकर चूहे को गुर्राईं।
चिड़िया कौवा और कबूतर,
लगे नाचने मिल के जमकर।
जब हाथी ने चिंघाड़ लगाई,
जल्दी चलो बाराती भाई।
सुनकर शेर को गुस्सा आया,
शेरनी को फिर और नचाया।
सभी बाराती लगे झूमने,
बिल्ली चूहे को लगी चूमने।
किया साँप ने नागिन डांस,
और किसी को दिया न चांस।
इतने में दुल्हन का घर आया,
देख-देख बंदर शरमाया।
उधर होने लगा जब द्वार चार,
भूखे बाराती खाने को तैयार।
टूट पड़े सब जमकर खाने,
बंदर को छोड़ा ब्याह रचाने।
सुबह हुई सबकी बिदाई,
नई बंदरिया परिवार में आई॥
परिचय–डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।