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इश्क़ के रूप

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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स्नेह,मोहब्बत,प्रेम,प्यार,
इश्क़ के ये संगी चार।
परस्पर प्रेम मानव का,
है सुखी जीवन का आधार।

माँ प्रेम से हो अभिभूत,
शिशु को दूध पिलाती है।
कृष्ण रूप देख शिशु में,
इश्क ममता बन जाती है।

ले आलिंगन में प्रिय को,
लैला-मजनूं की कथा सुनाते हैं।
तोड़ लाऊँ चाँद तारे,प्रिय पर जान लुटाते हैं,
भूल के सारी दुनियाँ इश्क में खो जाते हैं;
तब इश्क,मोहब्बत बन जाती है।

जीवों की कर सेवा,जीव प्रेम दिखलाते हैं,
प्राणी मात्र की सेवा कर भक्ति में
समय बिताते हैं।
संतों का यही इश्क भक्ति बन जाता है,
राधा का प्रेम,रुक्मणी का इश्क…
मीरा की भक्ति बन जाता है।

सीमा पर सैनिक लड़कर शहीद हो जाते हैं,
शहादत से जनमानस में देशभक्ति जगाते हैं।
देश से इश्क देशप्रेम बन जाता है,
देशप्रेम ही मानव में सोया जोश जगाता है।

यही इश्क अंग्रेजी में ‘लव’ कहलाता है,
ममता,मोहब्बत,भक्ति,देशप्रेम या
मोह किसी का,
राधा की प्रीत या मीरा की भक्ति,
बस लव पर ही खत्म हो जाता है॥

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनाम `गीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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