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इसका अंत कहाँ ?

डॉ. आशा मिश्रा ‘आस’
मुंबई (महाराष्ट्र)
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रोज की तरह आज भी आकाश पाठ ख़त्म होने के बाद पहले घंटे की शुरुआत में कक्षा में आया। आकाश मेरी कक्षा का ग्यारह-बारह वर्ष का छोटा- सा बच्चा था। हर दिन देरी से आने के कारण डाँट खाकर चुपचाप अपनी जगह पर जाकर बैठ जाता। आज जब मैंने उसे देरी से आने के कारण डाँटा तो वो फूट-फूटकर रोने लगा। उसका रोना देखकर मैं भी डर गई। पास बुलाकर आँसू पोंछा और सर पर हाथ फेरकर उसे शांत किया।
थोड़ी देर बाद पूछने पर आकाश ने बताया कि कल रात उसके पिताजी शराब पीकर आए,माँ को मारा। हम भाईयों को भी मारा,खाना उठा कर फेंक दिया,इसीलिए रात को देरी से सोने के कारण सुबह पाठशाला आने में देर हो गई। मैंने पूछा रात को खाना खाया या नहीं तो बोला,खाना तो पापा ग़ुस्से में फेंक दिए थे तो,कैसे खाता। मन काँप गया।सोचने लगी,हमारे घर के बच्चों को खाने में कितना मीन-मेख निकालने की आदत है,और ये बच्चे रात भर भूखे,कैसे सो पाए होंगे ?
मेरी आदत है हर दिन बच्चों को बिस्किट्स या नमकीन खाने के लिए ज़रूर देती थी,इसके दो कारण थे-एक तो सुबह बच्चे कुछ खाकर नहीं आते थे क्योंकि ज़्यादातर बच्चों के घर सुबह-सुबह कुछ नहीं बनता था,दूसरे उन्हें मिल-बाँटकर खाने की आदत भी होती थी। मध्यान्ह भोजन १० बजे के बाद ही आता था,तब तक कुछ खाकर बच्चों को राहत मिलती थी और मुझे भी अच्छा लगता था।
आकाश बहुत ही होनहार बच्चा था,पढ़ने में होशियार,मेहनती,समय पर गृहकार्य पूर्ण करना आदि सभी ख़ूबियाँ थीं उसमें। अक्सर सोचती इस तरह के घर के माहौल में वह आगे कैसे पढ़ेगा ? कहीं ऐसा न हो पिताजी को शराब में डूबा देख इसके क़दम भी भटक जाएँ। उसे और सभी बच्चों को समझाती,बड़े होने पर सही-ग़लत का फ़ैसला सोच-समझकर करना। घर में एक व्यक्ति की ग़लती की सज़ा पूरे परिवार को भोगनी पड़ती है।
आज भी उस दिन को याद करके आकाश का चेहरा मेरे सामने आ जाता है और मेरी आँखें नम हो जाती हैं। आकाश हीं क्यों,उसके जैसे अनेक बच्चे हमारे देश में हैं,जिन्हें इस तरह की अनेक कठिनाइयों से होकर गुज़रना पड़ता है। कक्षा के सभी बच्चों की कुछ न कुछ परेशानी रोज़ ही सुनती थी,और समझ नहीं पाती थी कि इसका अंत कहाँ है ? इन बच्चों का बचपना कब यौवन में बदल जाता है,वो समझ हीं नहीं पाते। अक्सर कुंठा का शिकार हो जाते हैं,छोटी उम्र में हीं ग़लत लोगों की संगत में फँस जाते हैं और अपनी ज़िंदगी बरबाद कर लेते हैं। हमें और हमारी सरकार को इस बात पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि किसी बच्चे का बचपना उससे न छीना जाए।

परिचय–डॉ. आशा वीरेंद्र कुमार मिश्रा का साहित्यिक उपनाम ‘आस’ है। १९६२ में २७ फरवरी को वाराणसी में जन्म हुआ है। वर्तमान में आपका स्थाई निवास मुम्बई (महाराष्ट्र)में है। हिंदी,मराठी, अंग्रेज़ी भाषा की जानकार डॉ. मिश्रा ने एम.ए., एम.एड. सहित पीएच.-डी.(शिक्षा)की शिक्षा हासिल की है। आप सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापिका होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत बालिका, महिला शिक्षण,स्वास्थ्य शिविर के आयोजन में सक्रियता से कार्यरत हैं। इनकी लेखन विधा-गीत, ग़ज़ल,कविता एवं लेख है। कई समाचार पत्र में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। सम्मान-पुरस्कार में आपके खाते में राष्ट्रपति पुरस्कार(२०१२),महापौर पुरस्कार(२००५-बृहन्मुम्बई महानगर पालिका) सहित शिक्षण क्षेत्र में निबंध,वक्तृत्व, गायन,वाद-विवाद आदि अनेक क्षेत्रों में विभिन्न पुरस्कार दर्ज हैं। ‘आस’ की विशेष उपलब्धि-पाठ्य पुस्तक मंडल बालभारती (पुणे) महाराष्ट्र में अभ्यास क्रम सदस्य होना है। लेखनी का उद्देश्य-अपने विचारों से लोगों को अवगत कराना,वर्तमान विषयों की जानकारी देना,कल्पना शक्ति का विकास करना है। इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद जी हैं।
प्रेरणापुंज-स्वप्रेरित हैं,तो विशेषज्ञता-शोध कार्य की है। डॉ. मिश्रा का जीवन लक्ष्य-लोगों को सही कार्य करने के लिए प्रेरित करना,महिला शिक्षण पर विशेष बल,ज्ञानवर्धक जानकारियों का प्रसार व जिज्ञासु प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘हिंदी भाषा सहज,सरल व अपनत्व से भरी हुई भाषा है।’

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