प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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दशहरे के साथ अनेक परंपरागत विश्वास भी जुड़े हुए हैं। इस दिन राजा का दर्शन शुभ माना जाता है। इस दिन लोग ‘नीलकंठ’ के दर्शन करते हैं। गाँवों में इस दिन लोग जौ के अंकुर तोड़कर अपनी पगड़ी में खोंसते हैं। उत्तर भारत में दस दिन तक श्रीराम की लीलाओं का मंचन होता है। विजयादशमी रामलीला का अंतिम दिन होता है। इस दिन रावण का वध किया जाता है तथा बड़ी धूमधाम से उसका पुतला जलाया जाता है।
कई स्थानों पर बड़े-बड़े मेले लगते हैं। राजस्थान में शक्ति-पूजा की जाती है। मिथिला और बंगाल में आश्विन शुक्लपक्ष में दुर्गा की पूजा होती है। मैसूर का दशहरा पर्व देखने लायक होता है। यह पर्व सारे भारत में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
दशहरे के अवसर पर क्षत्रिय अपने अस्त्र-शस्त्रों की पूजा करते हैं। जिन घरों में घोड़ा होता है,वहाँ विजयादशमी के दिन उसे आँगन में लाया जाता है। घोड़े को विजयादशमी की परिक्रमा कराई जाती है और घर के पुरुष घोड़े पर सवार होते हैं। इस दिन तरह-तरह की चौकियाँ निकाली जाती हैं। ये चौकियाँ अत्यंत आकर्षक होती हैं।
सनातन धर्म में दशहरा पर्व का विशेष महत्व है। इस पर्व पर लोग आपसी मतभेद भुलाकर भाईचारे की मिसाल पेश करते थे,लेकिन वर्तमान समय में यह परंपरा अब धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। अब न लोगों के लबों पर पान की लाली होती है और न ही लोग बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते नजर आते हैं। अब लोग दशहरे का महत्व बस इतना ही समझते है कि इस दिन झांकियां निकलेगी और रावण के पुतले का दहन होगा।
दशहरा में एक दूसरे को पान न खिलाया जाए तो कुछ अधूरा-सा लगता है। खासतौर से बुंदेलखंड में यह परंपरा प्राचीन समय से है, लेकिन आधुनिक परिवेश में व्यस्तता और गुटखा-सिगरेट के बढ़ते चलन के कारण यह प्राचीन परंपरा घरों से ही गुम हो गई है। स्मार्ट फोन के जमाने ने युवाओं को अपनी आगोश में ले लिया है और एक दूसरे के घर जाकर आशीर्वाद लेने की परंपराएं भी कम हो गई हैं।
प्राचीन परंपराओं को निभाने में युवा पीढ़ी की रुचि कम ही दिखती है। उच्च तकनीक के युग में अब युवा एक-दूसरे के घर जाने की जगह मोबाइल से संदेश व इंटरनेट से दशहरे का ई-कार्ड भेजना ही ज्यादा मुनासिब मानते हैं।
जो भी हो,दशहरे का पर्व सदा धार्मिक,सांस्कृतिक, सामरिक व सामाजिक महत्व रखता है। भले ही लोग व्यस्त हो गए हों,तो भी दशहरे का महत्व किसी भी प्रकार से कम नहीं हुआ है,न ही होगा।
परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।