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उत्तराखण्ड की राजनीति से प्रकाश पन्त का जाना

शशांक मिश्र ‘भारती’
शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश)

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लम्बे समय से उत्तराखण्ड की राजनीति में सक्रिय भाजपा की हर सरकार में महत्वपूर्ण दायित्व के साथ उपस्थिति दर्शाने वाले प्रकाश पन्त ने अमेरिका में ५ जून २०१९ को अन्तिम साँस ली। वह कैंसर के इलाज के लिए ३० मई को अमेरिका ले जाये गये थे। लम्बे समय से कैंसर जैसी भयंकर बीमारी से जूझ रहे श्री पन्त मात्र ५९ साल की आयु में हम सबके बीच से चले गये,जो एक असमायिक घटना है,जिसने पूरे उत्तरखण्ड व बाहर उनके चाहने वालों मित्रों को शोकाकुल कर दिया।

राजनीति में उनकी अपनी पहचान थी और पकड़ भी। उनके द्वारा सदन में प्रयोग किये गये शब्द अपना विशेष महत्व रखते थे। एक शब्द श्रीमन जिसका वह पीठ को सम्मान सहित सम्बोधन करने के लिए प्रयोग करते थे,अब सुनने को नहीं मिलेगा। राज्य बनने से पहले उत्तर प्रदेश में विधानपरिषद के सदस्य व राज्य बनने के बाद इन्हें २००१ में पहला विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया। नित्यानन्द स्वामी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में इन्होंने यह दायित्व अच्छी तरह निभाया। इसी कार्यकाल में मुझे एक साहित्यिक आयोजन के अर्न्तगत डीएवी कालेज देहरादून के पं.दीनदयाल उपाध्याय सभागार में इनसे मिलने का पहली बार अवसर मिला। जहां पता चला कि,वह कवि हृदय हैं और कविता भी लिखते हैं। कई कविताओं को पढ़ने व सुनने का अवसर भी मिला। उसके बाद लगभग पन्द्रह साल पिथौरागढ़ के राजकीय इण्टर कालेज दुबौला रामेश्वर में सेवा के दौरान मिलने के अनेक अवसर आये। उनके पिताजी व भाई अक्सर पिथौरागढ़ में मेडिकल स्टोर पर मिल जाते थे।

राजनीति के सफर की बात करें तो होनहार बिरवान के होत चिकने पात की भांति इनमें लक्षण छात्र जीवन से ही दिखने लगे थे,जब इन्होंने १९७७ में छात्र राजनीति में कदम रखा। १९८८ में नगर पालिका परिषद पिथौरागढ़ में सदस्य निर्वाचित हुए और राज्य राजनीति में १९९८ में प्रवेश किया,जब विधानसभा उत्तर प्रदेश के सदस्य निर्वाचित हुए। २००२,२००७ व २०१७ में न केवल विधानसभा चुनाव जीते,अपितु सरकार में महत्वपूर्ण दायित्व भी निभाया। उनके जाने को जिस तरह से उनके गृहनगर सोर घाटी ने अनुभव किया,समाचार सुनते ही लोगों का हुजूम इनके घर की ओर उमड़ा। देश-प्रदेश की राजनीति से संवेदनाएं आयीं। राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने शोक वक्तव्य दिये,वह कहीं न कहीं इनके व्यक्तित्व,व्यवहार कुशलता व समाज और राजनीति में इनके द्वारा निभाये गये पद और कद को दर्शाते हैं। इनकी हर जगह उपस्थिति को दर्शाने के लिए ये पर्याप्त है।

पं.दीनदयाल उपाध्याय को आदर्श मानने वाले साहित्यिक अभिरुचि के धनी श्री पन्त का जन्म मोहनचन्द्र पन्त की धर्मपत्नी श्रीमती कमला पन्त के यहां ११ नवम्बर १९६० को जनपद लखीमपुर खीरी में हुआ था,जहां पर इनके पिता एसएसबी में सर्किल आर्गनाइजर के पद पर कार्यरत थे। इनकी बड़ी सन्तान बेटी नमिता सैन्य अधिकारी,बेटा सौरभ और बेटी सुचिता पढ़ाई कर रहे हैं।

समाज से जुड़े श्री पन्त अपने आस-पास की गतिविधियों में जाने से अपने-आपको रोक नहीं पाते थे,और कई बार होली खेलते,बाजे बजाते एक आम आदमी की तरह भागीदारी करते दिख जाते थे। मेले-त्यौहारों में अक्सर दिख जाना वहां पर लोगों से बात करना इनकी विशेषता रही है। मेरे कार्यस्थल से कुछ दूरी पर रामेश्वर मन्दिर एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान के रूप में पिथौरागढ़ चम्पावत और अल्मोड़ा में प्रसिद्ध है,जहां पर साल में कई बार मेलों का आयोजन होता है,जिनमें या उसके अलावा समय-समय पर श्री पंत का रामेश्वर आना रहता था,जिसके कारण वहां के लोगों का इनसे काफी जुड़ाव था। उस क्षेत्र के लिए इन्होंने कई महत्वपूर्ण काम भी किये थे।

१९८४ में स्वास्थ्य विभाग से फार्मासिस्ट की नौकरी छोड़ने के बाद यह पूरी तरह से समाज और राजनीति में आ गये।कुछ माह कम्युनिस्ट पार्टी में रहे। फिर १९८४ में ही भाजपा में आ गये। साथ ही अनेक दायित्वों के साथ पार्टी और अपना कद बढ़ाने में जुट गये। पार्टी ने जब-जब इन पर भरोसा किया,यह खरे उतरे और अपनी छाप छोड़ी। एक बार तो २०१७ में ऐसा लगने लगा था कि,श्री पंत राज्य की बागडोर संभालने वाले हैं,पर राज्य के वित्तमंत्री के रूप में असन्तुष्टों को भी अपनी मुस्कराहट अनोखे अन्दाज व विषय पर पकड़ से सन्तुष्ट करते दिखे। सत्ता और संगठन दोनों जगह उनकी साख थी। पूर्व मुख्यमंत्री भगतसिंह कोश्यारी,बीसी खंडूरी,रमेश पोखरियाल निःशंक और विजय बहुगुणा जैसे दिग्गज उन्हें अपने समकक्ष बराबर का दावेदार मानते थे।

सदा परिवारिक मूल्यों को समर्पित अध्ययनशील व सादगी पसन्द यह साहित्यिक कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति सदैव देते थे। नौकरी छोड़ने के बाद अपने आध्यात्मिक गुरु की सलाह पर जब इन्होंने सफेद वस्त्र पहनना आरम्भ किया,तो अन्त तक निभाया। इससे इनका अन्तःकरण भी वस्त्रों-सा पवित्र धवल हो गया। सादा और नाममात्र के भोजन का धनी अपने पीछे यह बहुत कुछ छोड़ गये। इनका जाना उत्तराखण्ड की राजनीति,उसमें भी जनपद पिथौरागढ़ की अपूर्णनीय क्षति है,जिसको भरना और विकल्प तलाशना भारतीय जनता पार्टी के लिए इतना आसान नहीं है। यह कुछ समय तक प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करेगा ही,इसमें कोई सन्देह नहीं होना चाहिए।

परिचयशशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैl २६ जून १९७३ में मुरछा(शाहजहांपुर,उप्र)में जन्में हैंl वर्तमान तथा स्थाई पता शाहजहांपुर ही हैl उत्तरप्रदेश निवासी श्री मिश्र का कार्यक्षेत्र-प्रवक्ता(विद्यालय टनकपुर-उत्तराखण्ड)का हैl सामाजिक गतिविधि के लिए हिन्दी भाषा के प्रोत्साहन हेतु आप हर साल छात्र-छात्राओं का सम्मान करते हैं तो अनेक पुस्तकालयों को निःशुल्क पुस्तक वतर्न करने के साथ ही अनेक प्रतियोगिताएं भी कराते हैंl इनकी लेखन विधा-निबन्ध,लेख कविता,ग़ज़ल,बालगीत और क्षणिकायेंआदि है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत एवं अंगेजी का रखते हैंl प्रकाशन में अनेक रचनाएं आपके खाते में हैं तो बाल साहित्यांक सहित कविता संकलन,पत्रिका आदि क सम्पादन भी किया है। जून १९९१ से अब तक अनवरत दैनिक-साप्ताहिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचना छप रही हैं। अनुवाद व प्रकाशन में उड़िया व कन्नड़ में उड़िया में २ पुस्तक है। देश-विदेश की करीब ७५ संस्था-संगठनों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज व देश की दशा पर चिन्तन कर उसको सही दिशा देना है। प्रेरणा पुंज- नन्हें-मुन्ने बच्चे व समाज और देश की क्षुभित प्रक्रियाएं हैं। इनकी रुचि- पर्यावरण व बालकों में सृजन प्रतिभा का विकास करने में है।

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