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उन्हें बुला लो

वंदना जैन
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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झूम रही हैं वृक्षों की डालियाँ,
फूल छेड़ते हैं रागिनी
वर्षा ने लगाई बूँदों की झड़ी,
कलियाँ ओस में मुँह धो रही है
हवाएं मनुहार कर रही हैं
‘उन्हें बुला लो।’

भौरे फूलों की गोद में,
बेसुध होकर खोने लगे हैं
जैसे बालक अनमने मन से,
आँखें मींच कर
अभिनय कर सोने लगे हैं
मिट्टी की सौंधी महक,
चिड़ियों की मनभावन चहक
काली घटाओं के व्याकुल घर्षण,
सावन के झूलों की मनुहार
तीज-त्योहारों की पुकार,
प्रीत के स्वरों में घुल कर गाए
‘उन्हें बुला लो।’

एक कप चाय की चुस्की,
दिन की प्रारंभिक झलकी है
कलम पर उंगलियों की जुम्बिश,
पन्नों पर थिरक कर कह रही है
‘उन्हें बुला लो।’

उदासियों के पंखों ने लगायी है गुहार,
व्याकुल है उड़ने को मन के परवाज
सुप्त कल्पनाओं ने दी है आवाज,
‘उन्हें बुला लो।’

प्रेम के कुछ अनकहे पत्र,
तैर रहे हैं नैनों के सागर में
और कुछ कसमसाती बातें।
व्याकुल हो प्रतीक्षा में कह रही हैं,
अब ‘उन्हें बुला लो॥’

परिचय-वंदना जैन की जन्म तारीख ३० जून और जन्म स्थान अजमेर(राजस्थान)है। वर्तमान में जिला ठाणे (मुंबई,महाराष्ट्र)में स्थाई बसेरा है। हिंदी,अंग्रेजी,मराठी तथा राजस्थानी भाषा का भी ज्ञान रखने वाली वंदना जैन की शिक्षा द्वि एम.ए. (राजनीति विज्ञान और लोक प्रशासन)है। कार्यक्षेत्र में शिक्षक होकर सामाजिक गतिविधि बतौर सामाजिक मीडिया पर सक्रिय रहती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत व लेख है। काव्य संग्रह ‘कलम वंदन’ प्रकाशित हुआ है तो कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित होना जारी है। पुनीत साहित्य भास्कर सम्मान और पुनीत शब्द सुमन सम्मान से सम्मानित वंदना जैन ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती हैं। इनकी उपलब्धि-संग्रह ‘कलम वंदन’ है तो लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा वआत्म संतुष्टि है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नागार्जुन व प्रेरणापुंज कुमार विश्वास हैं। इनकी विशेषज्ञता-श्रृंगार व सामाजिक विषय पर लेखन की है। जीवन लक्ष्य-साहित्य के क्षेत्र में उत्तम स्थान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-‘मुझे अपने देश और हिंदी भाषा पर अत्यधिक गर्व है।’

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