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उपराष्ट्रपति के वक्तव्य का भी कोई परिणाम नहीं निकला

निर्मलकुमार पाटोदी

इन्दौर(मध्यप्रदेश)

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नरेन्द्र मोदी की बहुमत वाली मज़बूत और राष्ट्र हित के नाम पर जीती सरकार ने घुटने टेक दिए। वह भी तब,महात्मा गांधी की डेढ़ सौ वीं जन्म जयती वर्ष चल रहा है। गुजराती गांधी की भाषा और शिक्षा नीति को गुजरात के वर्तमान युग के शिखर पुरुष ने धराशायी करके रख दिया। लौह पुरुष सरदार पटेल की की दृढ़ता और साहस का प्रभाव नये-नये गुजराती नरेन्द्र मोदी पर दिखाई नहीं दिया। यदि विरोध दक्षिण के तमिलनाडु के प्रबुद्ध लोग, विशेषज्ञ,सामाजिक कार्यकर्ता,संत,युवावर्ग की ओर से होता तो समझ में आता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत और संघ के संचालकों की भी कोई भूमिका सामने नहीं आ सकी है। उनकी ओर से भी मौन स्वीकृति हो गई व भाजपा संगठन का तो अभी अस्तित्व ही नहीं है। उसकी भूमिका ऐसे गंभीर अवसर पर शून्य रही है। देश की भारतीय भाषाओं के पक्षधरों पर तो,लगता है पक्षाघात है।
पुरुषोत्तमदास टण्डन नहीं है,मदनमोहन मालवीय भी नहीं है, सुभाषचंद्र बोस भी नहीं है,सुब्रह्मण्यम भारती भी नहीं है, लोकमान्य तिलक भी नहीं है और स्वामी दयानंद सरस्वती भी अब हमारे बीच नहीं हैं।
मलयायलम भाषी,इसरो के पूर्व प्रमुख,जाने-माने वैज्ञानिक, प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों के मुखिया रहे,पद्मश्री,पद्मभूषण, पद्मविभूषण से अलंकृत कन्नड़,हिंदी,संस्कृत मलयालम और अंग्रेज़ी भाषाओं के विद्वान के.कस्तूरीरंगन के व्यावहारिक अनुभव के साथ ही ८ अन्य ग़ैर हिंदी और हिंदीभाषी कमेटी के सदस्यों की सहमति से बनी शिक्षा नीति के आधार को ही पंगु बना दिया गया है। उनके अनुभव और योग्यता को धराशायी कर दिया गया है। जैसा पिछले सत्तर साल से हिंदी आघात पहुंचाया गया है,वैसा पुन: घटित किया गया है व भारत को भारत के हाथों भारतीयता ने असहनीय आघात पहुंचा दिया गया है। मानव संसाधन विभाग के मंत्री से ऐसी हालत में क्या उम्मीद करें। उनमें इतना नैतिक साहस कहाँ से आएगा ? वे इस मुद्दे पर पद त्याग कर देते ? वे तो गुरुकुल से निकले हैं,पर गुरुकुल पद्धति की छाप उनमें नहीं दिखाई दी है।
हमारी भाषाओं के प्रबल पक्षधर उपराष्ट्रपति वैंकया नायडू का दिया गया वक्तव्य का भी कोई परिणाम नहीं निकला ?
बिना नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की सहमति के ऐसा निर्णय संभव ही नहीं है। अब यह उम्मीद कैसे पूरी हो सकेगी कि,हिंदी के समर्थक जो देश में और विदेश में हैं। वे ही आगे आएं,भले ही देर से ही सही तो पुन: पुनर्जागरण जन्म उदित हो जाए। इसके लिए निराश हुए बिना किसी को,कुछ को तो सामने आना होगा। कुछ पाने के लिए खोने कुछ खोने की क्षमता वालों की आवश्यकता समय की माँग है।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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