शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान)
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गरीबी ने हाल कुछ ऐसा बनाया,
एक वक्त का खाना भी हाथ नहीं आयाl
मांगकर के लाया था रोटी के टुकड़े,
एक आवारा कुत्ता वो ले गया झपट केl
भूखे को रातभर नींद भी न आई,
हे ईश्वर ये गरीबी हमारे हिस्से ही क्यों आई ?
कचरे से चुन-चुनकर जो कुछ भी लाते हैं,
उसी से हम पेट की भूख को मिटाते हैंl
तन पर तो कपड़े नहीं,न पाँव में पन्हैया,
हाल हमारा देख रहे हो जग के रचैयाl
पैदा किया है तो सहारा तो दिया होता,
जीने का हक भी हमारा दिया होताl
अमीरों के बच्चे जो जूठन फेंक जाते हैं,
उससे हम गरीब पेट की आग बुझाते हैंl
गरीबों को पास कोई फटकने नहीं देता,
कोई भी दुनिया में हमारा साथ नहीं देताl
पास चले जायें तो फटकार लगा देते हैं,
रोटी की चोरी पर भी जेल करा देते हैंl
हे प्रभु,या तो हमारी ये गरीबी हटाओ,
या हमें मिटाकर सारा टंटा ही मिटाओl
ये गरीबी प्रभु दुनिया के लिये श्राप है,
तेरी दुनिया में हमारा कोई माई,ना बाप हैl
भेजा है दुनिया में तो गरीबी से मुक्त करो,
हम भी तुम्हारी संतान हैं,हमारा भी कष्ट हरोl
हमारा भी आपके बैंक में खाता खुलवा दो,
खाते में थोड़ी ममता,करुणा,और दया जमा करवा दोll
परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।