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एक कड़वा सच है `अरिष्ट पत्रम्`

आरती सिंह ‘प्रियदर्शिनी’
गोरखपुर(उत्तरप्रदेश)
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प्रखर गूँज प्रकाशन के सानिध्य में झालावाड़(राजस्थान) की वंदना शर्मा द्वारा रचित एकल काव्य संग्रह अरिष्ट पत्रम् समाज की कड़वी सच्चाई को बयान करता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह कड़वा ही होगा,मगर एक सच्चाई यह भी है कि औषधि एवं सत्य हमेशा कड़वा ही होता है। यह जितना कड़वा होगा,इसकी तासीर उतनी ही ज्यादा होगी।

समाज में पुरुषों की स्थिति पर व्यंग्य करती हुई लेखिका कहती हैं-

“आदमी तो बेचारा एक जीव होता है

यह पालतू पर बड़ा वफादार होता है,

अपने घरों में मांस का टुकड़ा मत डालिएगा साहिब

वरना कुत्ता है,भूखा है,झपट पड़ता हैl”

इन पंक्तियों में पुरुषों की हवस से जुड़ी कड़वी सच्चाई छुपी है। आज पुरुषों की नजर में स्त्री एक मांस का टुकड़ा बनकर रह गई है। मांगने वालों की स्थिति पर भी वह तंज़ करती है-

“आप जैसे लोग उनकी झोली में मुँह मांगा डालते हैं,

आप जैसे लोगों ने ही देश को बदहाल बनाया हैl”

और सच भी है हम स्वयं पुण्य कमाने के लिए किसी भी प्रकार के भिखारियों को देने की आदत डाल लेते हैं। सड़क पर भीख मांगने वाला तो फिर भी पेट के लिए भीख मांगता है,मगर कुछ लोग सब कुछ होते हुए भी कुछ लोग कभी भगवान के नाम पर तो कभी किसी और चीज के नाम पर भीख मांगते हैं। हम उन्हें खुशी-खुशी देते ही नही हैं,बल्कि उन्हें भीख देने में हम अपनी शान महसूस करते हैं।

अरिष्ट पत्रम् की कविताएं मुख्यतः प्रतीकात्मक चित्र प्रस्तुत करती हैं। वंदना शर्मा अपनी बातों को स्पष्ट करने के लिए प्रतीकों एवं बिंबों का भरपूर सहारा लेती हैं। अच्छे व्यक्तियों की जिंदगी की जद्दोजहद पर वह कहती हैं-

“करता हूँ समझौता हर पल खुशियों के साथ,

इसलिए मैं सभ्य नहीं हूँl”

लेखिका ने अपने इस संग्रह के माध्यम से समाज की हर एक सच्चाई को उधेड़ कर रख दिया है। आज स्त्री-पुरुष किस प्रकार संवेदनहीन होते जा रहे हैं। मानवता सिर्फ किताबी बातें बनकर रह चुकी है। हर इंसान मानो जिंदा लाश बन गया हो। तभी तो लेखिका कहती हैं-

“माना कि ये मुद्दे सोच नहीं सकते

समझ नहीं सकते,

पर,इन मुर्दों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि

यह तालियां बजाना जानते हैंl”

उन्होंने नेताओं,बाबाओं और मीडिया इत्यादि के कार्यों की भी सच्चाई पर अपनी कलम के तीखे प्रहार किए हैं। उनकी प्रत्येक कविता में एक कथानक है,जो पाठक के मस्तिष्क को स्पंदित कर देता है। उन्होंने देश की हर एक समस्या को उठाया है,और उसकी जड़ों से सबका परिचय भी कराया है। इंसान स्वयं हीं सारी समस्याएं पैदा करता है,और फिर उसे स्वयं मिटाने का स्वांग भरता है। ठीक उसी प्रकार,जैसे हर साल हम स्वयं ही रावण की विशाल से विशाल आकृति को अपने हाथों से बनाते हैंl बाद में उसे मारने का ढोंग करते हैं,और कभी रामलला का मंदिर बनाने के लिए भाई-भाई के दुश्मन बन जाते हैं। जिस राम ने भ्रातृ प्रेम एवं मातृ प्रेम का स्वयं उदाहरण पेश किया है,उसी राम का घर बनाने के लिए लोग अपने ही भाइयों को मारने पर तुले हैं। अपनी माता को वृद्धाश्रम भेजते हैं और उनके कमरे को पूजा का स्थान बना देते हैं। उन्होंने अपनी कविता जब राम भी हँसने लगे में लिखा है-

“अरे! उस मकान में अगर

तू भी तेरी पत्नी के साथ,

सुख-चैन से रह लिया है

बच्चों को अच्छे संस्कार दे दिए होते

तो अरे नालायक!

वही तेरा घर मेरा मंदिर बन गया होताl”

अंततः कहना चाहूंगी कि,वंदना शर्मा ने इस संग्रह में श्रृंगार के रस का शहद नहीं घोला है,अपितु नीम की कड़वी पत्तियों का घोल हमारे कानों में डाला है। शायद अरिष्ट पत्रम् का यह घोल समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए औषधि का काम करेगा।

परिचय-आरती सिंह का साहित्यिक उपनाम-प्रियदर्शिनी हैl १५ फरवरी १९८१ को मुजफ्फरपुर में जन्मीं हैंl वर्तमान में गोरखपुर(उ.प्र.) में निवास है,तथा स्थाई पता भी यही हैl  आपको हिन्दी भाषा का ज्ञान हैl इनकी पूर्ण शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी) एवं रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा हैl कार्यक्षेत्र-गृहिणी का हैl आरती सिंह की लेखन विधा-कहानी एवं निबंध हैl विविध प्रादेशिक-राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कलम को स्थान मिला हैl प्रियदर्शिनी को `आनलाईन कविजयी सम्मेलन` में पुरस्कार प्राप्त हुआ है तो कहानी प्रतियोगिता में कहानी `सुनहरे पल` तथा `अपनी सौतन` के लिए सांत्वना पुरस्कार सहित `फैन आफ द मंथ`,`कथा गौरव` तथा `काव्य रश्मि` का सम्मान भी पाया है। आप ब्लॉग पर भी अपनी भावना प्रदर्शित करती हैंl इनकी लेखनी का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से महिलाओं का हौंसला बढ़ाना हैl आपके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैंl  

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