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क्या बेटियाँ ना लाएं…?

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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दुर्दम्य यौवन बिटिया पर छाया,
आँखों की कालिमा गहराई।
हाथ पीले कर दो बिटिया के,
पास-पड़ोसी ने बात सुनाई॥

बिटिया की आँखों में डर-सा देखा,
फिर भी मन ही मन मुस्काई।
जगती आँखों से न जाने कितने,
रंग-बिरंगे सपने सजाये॥

द्वार से द्वार भटक रहे वर की तलाश में,
दाम पर दाम बोले गए दहेज़ की बोलीं में।
न जाने कितने राज़ खोले गए,
इन दहेजप्रेमियों की टोली में॥

बिटिया में कोई कमी होगी,
हम तहेदिल से स्वीकार करेंगें।
कमी न करना आव-भगत में,
कमी न करना दहेज़ जगत में॥

बस इतनी-सी फरमाइश फरमाई,
बेटे का ऊँचा दाम लगा कर।
रिश्तेदारों में वाह-वाही पाई,
देखो थोड़ी भी लाज न आईं॥

अब गुमसुम रात में बैठे,
कैसे पूरी करेंगे फरमाइश।
सारी रात नींद न आईं,
फिर लुगाई ने उपाय सुझाया॥

गिरवी रख दो खेत-खलिहान,
या वो खानदानी मकान।
यही विचार मुझे भी भाया,
रिश्तेदारों के आगे न हाथ फैलाया॥

बड़ी धूमधाम से किया विवाह,
फिर भी उनका मन न भाया।
भिखमंगे-सा फिर है हाथ फैलाया,
बिटिया को भेज है कहलाया॥

जल्द ही ले जाएंगे,
जब आठ तोला सोना।
गढ़वा के पहनाएंगें,
बेटा भेज उसे बुलवाएंगें॥

फरमाइश पे फरमाइश,
ऐसा कुआँ भरा न जाए।
तुम्हीं बता दो,ऐ बेटे वालों क्या!
इस धरती पर हम बेटियाँ न लाएं…?

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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