डॉ. श्राबनी चक्रवर्ती
बिलासपुर (छतीसगढ़)
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ऐ बादल जरा हौले से बरस,
ताकि वो मेरे पास आ सके
थम जा, थोड़ा रुक जा कि,
वो जल्दी से पहुँच सके।
उनके आने की आहट,
तेरी रिमझिम फुहारें लाती है
सावन के झूले झूलाती है,
वर्षा के गीत सुनाती है।
तूफानी रात तीव्र आंधियों,
ने खूब रोका उसका पथ
पर बारिश की बूंदें हल्की,
होकर राह सजग कर गई।
कुछ ऐसा कर ऐ मेघा,
वो झटपट मेरे सामने आए
बादलों को अठखेलियाँ करने दे,
ताकि वो चटपट मंजिल तक पहुँच सके।
जब वो मेरे रुबरु हो,
तो काली घटा इतना बरस।
तेज़ बरस, अनवरत बरस,
कि वो फिर वापस जा न सके॥