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ओ कान्हा मेरे

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….

ओ मेरे माखन चोर कन्हैया,
कबसे खड़ी हूँ तेरे द्वार।
मैं ही मीरा मैं ही राधा,
आ सुन ले मेरी पुकार।
ओ कान्हा मेरे,सुन ले मेरी पुकार…

तेरी ही धुन में मस्त रही मैं,
छोड़ा सभी घर-द्वार।
बाँसुरी की धुन सुन तेरी,
नाचूं मैं बारम्बार।
ओ कान्हा…

ग्वाल बाल संग खेले कूदे,
और लीला रचाई हजार।
आ के देखो दशा गायों की,
रोयें हैं वो जार-जार।
ओ कान्हा…

मंदिरों में मूरत बनकर,
हँसे तू क्यों बार-बार।
तेरी भूमि ही पुकारे तुझको,
देखो बनी वो लाचार।
ओ कान्हा…

विषधर हो गए बहुत देश में,
इनके फन कुचलो इस बार।
भाई,भाई संग प्रेम रहा नहीं,
आ बाँसुरी बजा दे एक बार।
ओ कान्हा…

तेरे ही देश में सर उठा रहे सब,
अब दुश्मन अपने ही हजार।
लो सुदर्शन चक्र हाथ में,
तुम कर दो इनका संहार।
ओ कान्हा…

सब गीता के उपदेश भूल गए,
यहां पैसा ही है धारदार।
आ जाओ तुम मेरे कान्हा,
अब ले के नया अवतार।
ओ कान्हा मेरे…,सुन ले मेरी पुकार…ll

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है।आपकी लेखन विधा कविता,गीत,कहानि और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मानमहिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़लकहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैl साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।श्रीमती परमार की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आती रहती हैंl

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