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इस युग में `कृष्णा`

मानकदास मानिकपुरी ‘ मानक छत्तीसगढ़िया’ 
महासमुंद(छत्तीसगढ़) 
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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….

हे कृष्णा तू क्यों नहीं आता इस युग में लाज बचाने,
धार्मिक स्थल में लुट जाती नारी,क्यों शांत हो बंशी वाले।

चीर हरण से भी बड़ी दुर्दशा कितनों के साथ हो चुकी,
लगता है कलयुग में कृष्णा,गहरी नींद में सो चुकेl

बालपन में बहुरूपियों को,पलभर में तूने मार दिया,
अब के पाखंडी मौज कर रहे,कौन-सा अच्छा काम किया।

सागर किनारे देखो तो नर-नारी अर्धनग्न नहाते,
उनको आकर बोलो कृष्णा,क्यों नहीं समझाते ?

अपने मित्रों की बड़ी ही चिंता,राक्षसों से उन्हें बचाते रहे,
धरती में क्यों आए नहीं ? कई बच्चों की किडनी चुराते।

कालिया नाग के विष से यमुना नदी को मुक्त कराया,
कारखानों के नागों से लगता है कृष्णा तू भी घबराया।

गाय का रक्षक गाय का पालक इसलिए नाम गोपाल,
तो यहां की गाय,गाय नहीं क्या ? जिनका जीवन बेहाल।

गौ माता लावारिस हो गई सूखकर,देखो लगती कंकाल,
कसाई को बेच रहे हैं,कोई जिंदा खींचते गायों की खाल।

प्रेम मार्ग में सबको बांधकर,दुःख में भी सुख की अनुभूति,
यहां प्रेम में धोखा-धोखा,आकर सिखा दे कृष्णा सच्ची प्रीति।

माता-पिता की खातिर तुमने,तोड़ा कंस तहखाने का ताला,
यहां भी कंस जैसी औलाद हैं,तो उनका ही क्यों है बोलबाला।

पापी अत्याचारी को मिटाने जन्म लिया था भवसागर में,
अभी तक पापी जिंदा घूम रहे हैं,तुम कहां हो किस घर में।

सत्य धर्म पर चलने वालों का सारथी बनकर रथ चलाया,
यहां सत्य को पैसों से मारा,उनको तुमने क्यों नहीं बचाया ?

रणभूमि में बड़े गर्व से दिया था गीता का ज्ञान,
तो इस युग में क्यों जन्म नहीं ले रहे भगवान ?

हम तो तेरे नाम कथा सुनकर ही तुझको हैं माने,
होना तो चले आना कृष्णा,दुखियों का दर्द मिटाने।

कर्म-धर्म,जीवन-मरण‌,होनी-अनहोनी तू ही जाने,
हे कृष्णा फिर क्यों नहीं आता इस युग में लाज बचानेll

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