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कड़कती धूप

आशा आजाद`कृति
कोरबा (छत्तीसगढ़)
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आज कड़कती धूप में, वृक्ष एक है मित्र।
जनहित गुण परिपूर्ण है, खीचूँ उसका चित्र॥

वाहन पर मैं जा रहीं, मिलें राह पर छाँव।
देह जलाती धूप है, कहीं न मिलता ठाँव॥

सड़क उगलती ताप है, हवा बहुत है गर्म।
तन पर गमछा है मगर, बहुत जले है चर्म॥

प्यास लगी पथ पर मुझे, प्याऊ प्यास बुझाय।
सुसताने को वृक्ष में, हिय निज करे सुझाय॥

मस्तक मेरा घूमता, मिली छाँव फिर एक।
पीपल का वह वृक्ष था, उसका हिय था नेक॥

बैठ गई पीपल तले, मिला मुझे तब चैन।
संग हवा अरु छाँव दे, यह देखे निज नैन॥

वृक्ष तपन सहता मगर, सबको देता स्नेह।
जब तक जड़ चेतन रहे, तब तक चलती देह॥

ज्यों ही कटता वृक्ष सुनो, विकृत धरा का रूप।
भीषण गर्मी देह पर, पड़े निरंतर धूप॥

काट रहा सब जानकर, यही मनुज का स्वार्थ।
कल की चिंता त्याग कर, भूला हित परमार्थ॥

प्रगति पथ निज होड़ में, वृक्ष नित्य संहार।
आज कड़कती धूप में, कौन करे सत्कार॥

बिन मांगे ही वृक्ष सब, बैठाते निज द्वार।
हमको शुद्ध परोसते, प्राणतत्व आधार॥

हे मानव अब जागकर, धारे यह संकल्प।
अपने क्षरण विरोध से, वृक्ष न होवे अल्प॥

परिचय–आशा आजाद का जन्म बाल्को (कोरबा,छत्तीसगढ़)में २० अगस्त १९७८ को हुआ है। कोरबा के मानिकपुर में ही निवासरत श्रीमती आजाद को हिंदी,अंग्रेजी व छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्ञान है। एम.टेक.(व्यवहारिक भूविज्ञान)तक शिक्षित श्रीमती आजाद का कार्यक्षेत्र-शा.इ. महाविद्यालय (कोरबा) है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत आपकी सक्रियता लेखन में है। इनकी लेखन विधा-छंदबद्ध कविताएँ (हिंदी, छत्तीसगढ़ी भाषा)सहित गीत,आलेख,मुक्तक है। आपकी पुस्तक प्रकाशाधीन है,जबकि बहुत-सी रचनाएँ वेब, ब्लॉग और पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं। आपको छंदबद्ध कविता, आलेख,शोध-पत्र हेतु कई सम्मान-पुरस्कार मिले हैं। ब्लॉग पर लेखन में सक्रिय आशा आजाद की विशेष उपलब्धि-दूरदर्शन, आकाशवाणी,शोध-पत्र हेतु सम्मान पाना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनहित में संदेशप्रद कविताओं का सृजन है,जिससे प्रेरित होकर हृदय भाव परिवर्तन हो और मानुष नेकी की राह पर चलें। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामसिंह दिनकर,कोदूराम दलित जी, तुलसीदास,कबीर दास को मानने वाली आशा आजाद के लिए प्रेरणापुंज-अरुण कुमार निगम (जनकवि कोदूराम दलित जी के सुपुत्र)हैं। श्रीमती आजाद की विशेषज्ञता-छंद और सरल-सहज स्वभाव है। आपका जीवन लक्ष्य-साहित्य सृजन से यदि एक व्यक्ति भी पढ़कर लाभान्वित होता है तो, सृजन सार्थक होगा। देवी-देवताओं और वीरों के लिए बड़े-बड़े विद्वानों ने बहुत कुछ लिख छोड़ा है,जो अनगिनत है। यदि हम वर्तमान (कलयुग)की पीड़ा,जनहित का उद्धार,संदेश का सृजन करें तो निश्चित ही देश एक नवीन युग की ओर जाएगा। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा से श्रेष्ठ कोई भाषा नहीं है,यह बहुत ही सरलता से मनुष्य के हृदय में अपना स्थान बना लेती है। हिंदी भाषा की मृदुवाणी हृदय में अमृत घोल देती है। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति की ओर प्रेम, स्नेह,अपनत्व का भाव स्वतः बना लेती है।”

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