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अनमोल वक्त

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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नेहा के माता-पिता दफ्तर की व्यस्तता के कारण बेटी को बिल्कुल समय ना दे पाते, जिससे उसकी देख-रेख की जिम्मेदारी उन्होंने आया (रिया) को सौंप रखी थी, लेकिन वह जैसे-जैसे बड़ी हुई; अकेलापन महसूस करने लगी।
एक दिन नेहा अपनी माँ से बोली-“माँ, आप लोगों के पास तो मेरे लिए बिल्कुल वक्त ही नहीं है।”

माँ सोच में पड़ गई, फिर बोली-“ऐसे क्यों बोल रही हो ?”
“….हाँ माँ, सही ही तो कह रही हूँ। विद्यालय से आने के बाद मैं बिल्कुल अकेली पड़ जाती हूँ।”
“…अरे बेटा, रिया है न तुम्हारे पास!”
“…हाँ।” वह बड़े ही मंद स्वर में कह चुप रह गई।
नेहा को पहली बार लड़कियों की प्राकृतिक प्रक्रिया (मासिक धर्म) हुई। यह देख अनजानी नेहा उसे रिया को दिखाते हुए बोली-“यह देखो मेरे को क्या हुआ है ?”
रिया ने उसे जानकारी देते हुए उपाय बताया, जिससे दोनों में अपनत्व और भी बढ़ गया। अब रिया भी हर बात नेहा को बताने लगी। दोनों के रिश्ते की गहराई और भी बढ़ गई और दोनों अक्सर……। कोई किसी के बिना न रह पाता। एक दिन रिया काम पर ना आती तो, माँ से अधिक नेहा ही बेचैन हो जाती। यह प्रक्रिया लगभग हर दिन चलने लगी।
अचानक एक दिन माँ दफ्तर से कुछ जल्दी आ गई। आते ही कमरे में रिया और नेहा को हमबिस्तर हुए देख दंग रह गई।
“नेहा, क्या कर रही हो ?”
दोनों डरे सहमे उठ खड़े हुए।
“…कुछ नहीं मम्मी, मेरी पीठ में दर्द हो रहा है जिससे मैं रिया से मालिश करवा रही थी।”
रिया वहां से चली गई। माँ, नेहा के डरे-सहमे चेहरे को देख सब-कुछ पढ़ रही थी। इतने में नेहा के पिताजी भी घर आ गए।
“क्यों डांट रही हो इतना, बिटिया को ?”
माँ ने अपने अंदेशे को पिता को भी बताया। पिता ने नेहा को स्पर्श करते हुए कहा-“मेरी बेटी ऐसा कुछ नहीं कर सकती।”
“…आप ही ने उसे सिर पर बिठा रखा है।” माँ क्रोध भरे शब्दों में बोली-“मैंने खुद देखा था।जानते हैं, एक तो यह कानूनी जुर्म है और क्या आप उसके बाद के होने वाले प्रभावों को सोच सकते हैं ? सब कुछ उथल-पुथल हो जाएगा। यहां तक कि प्राकृतिक गठन भी नष्ट हो जाएगा।”
इतना सुनने पर नेहा दबे मुँह से बोली-“माँ, आप ही ने तो कहा था, “मैं नहीं हूँ तो क्या, रिया तो है ना।”

यह सुन माँ दंग भरी नजरों से देखती रही। पिता भी कहने लगे, “सचमुच इसमें गलती सिर्फ उसकी नही, हमारी भी समान रूप से है। हम यदि नेहा को पूरा वक्त देते तो शायद आज वो इतनी बड़ी गलती ना करती। माँ की नजरें भी पछतावे से झुक गई। काश! मैंने वक्त रहते नेहा की जरूरतों को समझा होता तो आज यह दिन ना देखना पड़ता…।

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