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कर्ण उवाच…

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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“हे कुँवारी माँ कुन्ती, मैं तुमसे पूछ रहा हूँ-
किस पाप की सजा माँ तुम मुझे दे रही हो ?
जन्म के साथ ही मुझे पानी में बहा रही हो।

कसूर था तेरा अपना दंड मुझे क्यों दे रही हो!
अबोध को अपनी ममता से वंचित कर रही हो।

वर्षों की सेवा तुमने जिस ऋषिवर की,
क्यों ली परीक्षा तुमने उनके विश्वास की ?

इससे ऋषि के विश्वास का हनन हुआ,
परिणाम स्वरूप ही मेरा तब जनम हुआ।

लोक-लाज शर्म से तब तुम तो डर गई,
पर मुझ अबोध का जीवन तो बर्बाद कर गई।

तुम कुँवारी थी या विवाहिता इससे मुझे क्या ?
मेरे लिए तो मेरी जननी दुनिया से मुझे क्या ?

मुझसे प्यारी तो तेरी अपनी लोक-लाज थी,
अपने जिगर के टुकड़े के लिए नहीं साज था।

तेरा महल तो बड़ा विशाल था वहीं पालती,
नौ माह छिपाया, कुछ साल और छिपाती।

आखिर अंत में तो लोक-लाज की हार हुई ,
तेरे उदगार के रूप में ममता की जीत हुई।

कर देती ये काम तू पहले, इतिहास कुछ और होता,
एक राजकुमार अपने अधिकार से वंचित न होता।”

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।