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कर्म का नाम ही धर्म

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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एक देश है,इंसानों के मर्म एक हैं,
तन,मन सब एक है,फिर क्यों तेरा धर्म अलग है।
मानव है तू,तेरा कर्म ही धर्म है,
न बाँटों प्रभु को,नाम पर प्रभु के,
नाम अनेक पर भाव एक है
भाव को समझो,कर्म का नाम ही धर्म है।

धर्म पिता का पालन करना,
अर्थ कमाना जीवन कर्म है।
स्कूल जाकर पढ़ते बच्चे,
उन्हें पढ़ाना शिक्षक धर्म है।
एक पिता की संतान अनेक है,
माता की ममता पर एक है।
दाना,पानी,पंख दिए,
उड़ने को आकाश एक है।
माता-पिता की सेवा करना बच्चों का धर्म है।

पढ़-लिखकर पद है पाया,
मेहनत करके खूब कमाया
यौवन पाया-घर बसाया,
नन्हीं किलकारियों से खूब सजायाl
अपने सारे फर्ज निभाना,हर इंसान का धर्म है।

परिवार से बनता समाज.
समाज से ही राष्ट्र है
भाई-भाई सब एक हैं,
सबके लहू का रंग एक है।
राष्ट्रहित में कर्म करना ही हर बन्दे का धर्म हैll

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनाम `गीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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