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घर बनाना बच्चों,मकान नहीं

काजल सिन्हा
इन्दौर(मध्यप्रदेश)
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घर बनाना बच्चों,पर मकान नहीं,
बारादरी इतनी लंबी ना बनाना
कि हम हँसें तो तुम सुन ना सकोl
घर बनाना बच्चों…

दरो-दीवार इतनी सख्त ना बनाना,
कि हमारे कहकहे दब जाएंl
घर बनाना बच्चों…

आँगन ऐसा बनाना कि साथ बैठ पाएं,
हाथों में एक-दूसरे का हाथ रख पाएl
घर बनाना बच्चों…

कभी पारिजात इकट्ठी कर,
पूजा की थाली में रखना
कभी मुट्ठी भर हरे चने,
छील कर हमारे मुँह में डालनाl
घर बनाना बच्चों…

जी भर कमाना मन भर खर्च करना,
फिर हमारी झोली में
अपने नन्हें-मुन्ने को धरनाl
घर बनाना बच्चों…

सधे कदमों से सफलता की सीढ़ी चढ़ना,
बस याद रखना तुम हमारी पीढ़ीl
घर बनाना बच्चों…

घर के बाहर आसमान सदा नीला,
और धरती सदा हरी नहीं होती
पर घर के अंदर माँ का प्यार,
और पिता का साया सदा रहता है।
इसलिए,
बच्चों घर बनाना,मकान नहींll

परिचय-दुमका(झारखंड) में २० जनवरी १९७२ को जन्मीं काजल सिन्हा समाजसेविका होने के साथ बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैl बचपन से ही पढ़ाई और कविता लेखन में विशेष रुचि रखती हैं। आपको बिहार मंडल की प्रावीण्य सूची में कक्षा दसवीं से ही छात्रवृत्ति मिलने लगी थी,जो स्नातक तक मंडल ने दी। आपकी शिक्षा भौतिक शास्त्र में स्नातक है। आपने स्नातक के द्वितीय वर्ष में स्वर्ण पदक प्राप्त किया था। कविता रचने में विशेष रुचि के लिए आपको नेशनल कायस्थ एक्शन कमेटी द्वारा सम्मानित किया गया है। मन के भावों को कविता से पाठकों तक पहुंचाने में माहिर श्रीमती काजल सिन्हा समाज की ज्वलंत समस्याओं पर लघु नाटिकाएं लिखती और अभिनय कर समाज तक अपना संदेश पहुंचाती है। आपका निवास इंदौर (मध्यप्रदेश) में हैl सामजिक गतिविधि के अंतर्गत आप महिलाओं के समूह की सक्रिय सदस्य होकर दरिद्र नारायण की सेवा भी करती हैं। आपकी कविता अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैl

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