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अनजान प्रियतम

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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सुनो चन्द्र वट,
अनजान प्रियतम!

मैं रहूँ ना रहूँ…
मैं दिखूँ ना दिखूँ,

अपनी साँसों में..यादों में..बातों में…,
इन हवाओं में..फिज़ाओं में…घटाओं में…

बारिश की बूंदों में…,
पत्तियों की सरसराहट में…

सुबह की पहली किरण में..,
दोपहर की अलसाई धूप में…

सुरम‍ई-सी शाम की पुरवाई में…,
चाँद की चाँदनी रात में…

बस..हमेशा अपने करीब..,
मुझे महसूस करना तुम…

क्यूंकि,
मेरे मनरंग..
तुम रोम-रोम हो
तो मैं नफ्स़-नफ्स़,
तुम चुपचाप हो
तो मैं खामोश़,
तुम शुद्ध हो
तो मैं पाक,
तुम प्रेम हो
तो मैं इश्क़।

हे शिवाप्रिय!
देखो अब चाँद उतर कर बादल से,
हमारी बातें ही कहने लगा।

अब बैठे-बैठे आँखों से,
अश्कों का धारा बहने लगा
और मैं पगली..,
तुम्हारी चाहत के ख्वाब सजाये..
तुम्हारी यादों में खोयी हूँ…।

आ के बाँध लो मुझे..,
सब्ज़ सिन्दूर से..।
आखिरी साँसों से पहले…
कि मुहब्बत का,
सुर्ख मजंर हूँ मैं॥

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।

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