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कलयुग का आना…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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खण्ड काव्य कलयुग से…

आया कलयुग कलकल करता तीव्र वेग खटपट-झटपट,
उद्योग मशीन विज्ञान रखा…कहता तर्क हीन चल हट
कुटिल कटाक्ष भ्रू चँचल चितवन मद चूर चाल में आया,
श्याम बदन ज्यो मेघ लपेटे…दृग अहंकार का जाया।

दंतपंक्ति है पीली-पीली…घनघोर घटा- सा काला,
गले लटकता नाभि छूता…लोहे दाने की माला
बारुद की गाड़ी में बैठा…बना सारथी अंगारा,
तेज चाल मतिभ्रम भ्रमर…भटकेगा बन बंजारा।

न वाचाल ना मिथ्यालापी…अभिशापित ना संतापी,
कौशल कुशल स्व अल्पभाषी भाता वह नहीं प्रलापी
जग देने को उपहार रखा, निज भोगोन्मुख भौतिकता,
भ्रष्टाचार विलासिता रखी तथा विलासी नैतिकता।

विकृत स्वरूप भग्न भेष में, मोक्ष मुक्ति निर्बाध रखा,
धर्म ध्यान से बैर नही है, यह लेकिन कलयुग न सखा
सतयुग की सात्विकता खोया, द्वापर शिष्टता बचाया,
कलयुग यह लेना न चाहता, सब अनुचित विषय बताया।

पावन सभ्य शिव सत्य सुंदर, शब्दों शोभा पाएगा,
उतरेगा नहीं आचरण में, काँच सजाया जाएगा।
अंतर्द्वंद छिपाए मन में, ऊपरी थी हँसी- सजावट,
स्वागत, आओ आओ कलयुग, दबा रखो मन अकुलाहट॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।