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लिखे कुशलता के कई अध्याय

श्री संजीवक
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शारद सुता विदा हुई,माँ शारद के लोक,
धरती माँ स्तब्ध है,चाह न सकती रोक।

सुषमा से सुषमा मिली,कमल खिला अनमोल,
मानवता का पढ़ सकीं,थीं तुम ही भूगोल।

गर पीड़ित की मदद कर,रचा नया इतिहास,
सुषमा नारी शक्ति का,करा सकीं आभास।

पा सुराज लेकर विदा,है स्वराज इतिहास,
सब स्वराज हित ही जिएँ,निश-दिन किए प्रयास।

राजनीति में विमलता,हँस के का साकार,
ओजस्वी वक्तव्य ले,दे ममता कर वार।

वाक् कला पटु ही नहीं,कौशल का पर्याय,
लिखे कुशलता के कई,कौशलमय अध्याय।

राजनीति को दे दिया,सुषमामय आयाम,
भुला न सकता देश यह,अमर तुम्हारा नाम।

शब्द-शब्द अंगार था,शीतल सलिल-फुहार,
नवरस का आगार तुम,अरि-हित घातक वार।

कर्म-कुशलता के कई,मानक रचे अनन्य,
सुषमा जी शत-शत नमन,तुमसे भारत धन्य।

शब्दों को ‘संजीव’ कर,फूँके उनमें प्राण,
दल-हित से जन-हित सधे,लोकतंत्र संप्राण।

महिमामयी महीयसी,जैसा शुचि व्यक्तित्व,
फिर आओ झट लौटकर,रटने नर भवितव्य।

चिर अभिलाषा पूर्ति से,होकर परम प्रसन्न,
निबल देह तुमने तजी,हम हो गए विपन्न।

युग तुमसे ले प्रेरणा,रखे लक्ष्य पर दृष्टि,
परमेश्वर फिर-फिर रचे,नर सुषमामय सृष्टि॥
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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