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कश्मीर में आतंक नहीं, शांति का उजाला हो

ललित गर्ग
दिल्ली
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कश्मीर को ‘धरती का स्वर्ग’ कहा जाता है। यहां के बर्फ से ढके पहाड़ और खूबसूरत झीलें पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। प्राकृतिक सुंदरता की वजह से इसे ‘भारत का स्विटजरलैंड’ भी कहा जाता है। इसी कारण यहां हर साल हजारों की संख्या में भारतीय और विदेशी पर्यटक आते हैं। हर किसी का सपना होता है कि वह चारों तरफ से खूबसूरत वादियों से घिरे जम्मू-कश्मीर की सुंदरता को एक बार तो जरूर देखे। यहां की बर्फीली पहाड़ियाँ, शांत वातावरण और खूबसूरत नजारे इस वादी की खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं तो यहां का मौसम सालभर सुहावना बना रहता है। वनस्पतियां, झील और नदी इस घाटी को जन्नत बनाने का काम करती हैं। प्रकृति की असल खूबसूरती आप यहां आकर देख सकते हैं, लेकिन इन शांत एवं खूबसूरत वादियों में पड़ोसी देश पाकिस्तान एवं तथाकथित उन्मादी तत्व आतंक की घटनाओं को अंजाम देकर अशांति फैलाते रहते हैं।
ऐसे ही जम्मू-कश्मीर के पुंछ इलाके में एक आतंकी हमले के बाद सेना के वाहन में आग लगने से ५ जवान शहीद हो गए। अधिकारियों ने वाहन पर गोलियों के निशान देखे हैं और ग्रेनेड के टुकड़े बरामद हुए हैं, जिससे आतंकी हमला होने की पुष्टि हुई है।
लम्बे समय की शांति, अमन-चैन एवं खुशहाली के बाद एक बार फिर कश्मीर में अशांति एवं आतंक के बादल मंडराए हैं। धरती के स्वर्ग की आभा पर लगे ग्रहण के बादल छंटने लगे थे कि, फिर कश्मीर के पुंछ इलाके में हुए इस आतंकी हमले की जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि इसे जम्मू-कश्मीर में जी-२० सम्मेलन से पहले एक सुनियोजित हमला बताया जा रहा है। यह हमला ऐसे समय में किया गया, जब भारत इस साल जी-२० की अध्यक्षता कर रहा है। केन्द्र सरकार कश्मीर में विकास कार्यों को तीव्रता से साकार करने में जुटी है, न केवल विकास की बहुआयामी योजनाएं वहां चल रही है, बल्कि पिछले ८ साल में कश्मीर को आतंकमुक्त करने में भी बड़ी सफलता मिली है। बीते साढ़े ३ दशक के दौरान कश्मीर का लोकतंत्र कुछ तथाकथित नेताओं का बंधुआ बनकर गया था, जिन्होंने अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए, जो कश्मीर देश के माथे का ऐसा मुकुट था, जिसे सभी प्यार करते थे, उसे डर, हिंसा, आतंक एवं दहशत का मैदान बना दिया, लेकिन वर्ष २०१४ के बाद से नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वहां शांति एवं विकास का अपूर्व वातावरण बना है। केन्द्र सरकार के सामने अब बड़ा लक्ष्य है वहाँ लोगों को बन्दूक से सन्दूक तक एवं आतंक से अमन-चैन तक लाने का बेशक यह कठिन और पेचीदा काम है, लेकिन राष्ट्रीय एकता और निर्माण संबंधी कौन-सा कार्य पेचीदा और कठिन नहीं रहा है ? इन कठिन एवं पेचीदा कामों को आसान करना ही तो नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार का जादू रहा है। नरेंद्र मोदी कश्मीर को जी-२० की बैठक के लिए चुनकर दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि नेतृत्व चाहे तो दुनिया से आतंकवाद को समाप्त किया जा सकता है।
१५ अगस्त १९४७ के दिन से ही पड़ोसी देश पाकिस्तान एक दिन भी चुप नहीं बैठा, लगातार आतंक की आंधी को पोषित करता रहा। अपनी इन कुचेष्ठाओं के चलते वह कंगाल हो चुका है, आर्थिक बदहाली में कटोरा लेकर दुनिया घूम आया, अब कोई मदद को तैयार नहीं, फिर भी उसकी घरेलू व विदेश नीति ‘कश्मीर’ पर ही आधारित है। कश्मीर सदैव उनकी प्राथमिक सूची में रहा। पाकिस्तान जानता है कि सही क्या है, पर उसकी उसमें वृत्ति नहीं है। पाकिस्तान जानता है कि गलत क्या है, पर उससे उसकी निवृत्ति नहीं है। कश्मीर को अशांत करने का कोई मौका वह खोना नहीं चाहता। आज के दौर में उठने वाले सवालों में ज्यादातर का जवाब केंद्र सरकार को ही देना है, उसने सटीक जबाव देकर आतंकियों के मनसूंबों को ढेर किया है, पड़ोसी देश की गर्दन को मरोड़ा भी है। यह बात भी सही है कि, इस मसले को दलगत राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। ऐसे वक्त में जब कश्मीर में लोकतांत्रिक तरीके से सरकार बनाने की तैयारियां चल रही हों, वहां शांति स्थापित करना सभी की प्राथमिकता होनी चाहिए।

अब कश्मीर में आतंक का अंधेरा नहीं, शांति का उजाला होना ही चाहिए। आए दिन की हिंसक घटनाएं आम नागरिकों में भय का माहौल ही बनाती हैं। माना कि रोग पुराना है, लेकिन ठोस प्रयासों के जरिए इसकी जड़ का इलाज होना ही चाहिए। इनमें अपनी सुरक्षा के प्रति भरोसा जगाना सरकार की पहली जिम्मेदारी है। घाटी में सक्रिय आतंकियों के खात्मे में सुरक्षा तंत्र ने काफी कामयाबियां हासिल की हैं। अब जरूरत है खुफिया तंत्र को दूसरी तरह की चुनौतियों का सामना करने को तैयार एवं सक्षम किया जाए। आतंकी संगठनों में नए भर्ती हुए युवाओं और उनके मददगारों की शिनाख्त जरूरी है, ताकि लक्षित हत्याओं के उनके इरादों को पहले ही नाकाम किया जा सके। घाटी में हालात सुधरने के केंद्र सरकार के दावों की सत्यता इसी से परखी जाएगी कि, अल्पसंख्यक पंडित और प्रवासी कामगार खुद को कितना सुरक्षित महसूस करते हैं। वास्तव में देखा जाए तो असली लड़ाई कश्मीर में बन्दूक और सन्दूक की है, आतंकवाद और लोकतंत्र की है, अलगाववाद व एकता की है, पाकिस्तान और भारत की है। शांति का अग्रदूत बन रहा भारत एक बार फिर युद्ध की बजाय शांति प्रयासों एवं कूटनीति से पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाए, यह अपेक्षित है।

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