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कारगिल गाथा

मनोरमा जैन ‘पाखी’
भिंड(मध्यप्रदेश)
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कारगिल विजय दिवस स्पर्धा विशेष……….


कालचक्र बोल रहा हूँ। मैं समय चक्र हूँ,निरन्तर गतिमान। आज फिर किसी ने मुझे पकड़ने की कोशिश की,पर मैं समय हूँ,अपनी गति से चलता हुआ। अपने सीने में सैकड़ों राज दफ़न किये बढ़ा चला जा रहा हूँ।हजारों हार-जीत देख चुका हूँ,पर कदम नहीं हारे….अनवरत् मैं चलता जा रहा हूँ।
देखो किसी ने अतीत की खिड़की खटखटाई,और सामने था सन् १९९९,स्थान कारगिल की पहाड़ियाँ,जम्मू-कश्मीर,और दो योद्धा सत्रह दिन तक लड़ते रहे।
एक नाज़ायज कब्जा करना था ऋषि-मुनियों की उस पवित्रभूमि पर, नियंत्रण रेखा पार कर जबरन,बंदूकों के स्वर और हताहत हो गिरते सिपाही।
दूसरी ओर बचाव में लगे देशप्रेमी जाँबाज योद्धा।
मई की भीषण गर्मियों से लेकर,जुलाई १९९९ के बीच भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ सशस्त्र संघर्ष।
परिणाम भारत अपनी भूमि को बचाने में सफल रहा,जिनके नेतृत्व में यह निर्णायक युद्ध हुआ,वो सेनानायक थे भारत से वेदप्रकाश मलिक और पाकिस्तान.से परव़ेज मुशर्रफ।
जहाँ भारत की शक्ति क्षमता तीस हज़ार थी,वहीं अनाधिकार चेष्टा करने वाले के पास पाँच हजार।
इस निर्णायक युद्ध में भारत के अपने ५२७ जवान आहत हुए,तो १३६३ घायल,एक योद्धा युदबंदी हुआ। एक लड़ाकू विमान नष्ट हुआ,एक लडाकू विमान दुर्घटनाग्रस्त और एक हैलीकाप्टर मार गिराया गया,जबकि पाकिस्तान का दावा था कि ३५७-४५३ आहत हुए,६६५से अधिक घायल और ८ युद्धबंदीl भारत ने तटस्थ दावा किया कि ७०० मारे गये।
इसमें पाकिस्तान.ने दावा किया था कि,सभी लडाकू कश्मीरी उग्रवादी हैं लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेजों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों ने झूठ की पोल खोल.दी। ३० हजार भारतीय सैनिकों के साथ ५ हजार घुसपैठिए इस युद्ध में शामिल थे।
यह सबसे मुश्किल लड़ाई थी,क्योंकि टाइगर हिल पर कब्जा करने की कोशिश थीl यहाँ कब़्जा करके लद्दाख घाटी को काटकर भारत से अलग करने की मंशा थी,जिससे पीओके के अलावा कश्मीर का एक और बड़ा हिस्सा उसके कब्जे में हो जाता।
भारत ने दो महीने की जद्दोजहद और ३८ जवानों की शहादत के बल पर इस नापाक मंसूबे को फैल किया था। इस युद्ध में कम उम्र के जाँबाज सैनिकों ने हँसते-हँसते खुद को झोंक दिया। एक जवान ने अपने साथी को यह कह कर पीछे कर दिया कि-“तुम्हारे बीबी-बच्चे हैं,तुम पीछे हटो।”
यह तो सिर्फ भारत भूमि पर ही सँभव है।
समय होते हुए भी मैं नमन करता हूँ भारत के ऐसे वीर सपूतों को,जो दो महीने तक जान हथेली पर लेकर देश के लिए लड़ते रहे। शादी की उम्र में शहीद होने वाले उस नौजवान को नमन करता हूँ,जिसकी माँ उन्नीस साल से बराबर दीप जला रही है बेटे की शहादत पर।
समय होते हुए भी मेरी आँख नम हैं। छब्बीस जुलाई,उन्नीस सौ उन्नीस का वो दिन आज भी मेरे रोंगटे खड़े कर जाता है,जब अपने साथियों को खोकर भी टाइगर हिल की ऊँचाई पर भारतीय ध्वज जन मन गण गाते हुए लहर-लहर लहरा रहा था। शहीदों की गाथा आसमान से सुना रहा था।
मैं समय हूँ। अनवरत गतिमान्…l

परिचय-श्रीमती मनोरमा जैन साहित्यिक उपनाम ‘पाखी’ लिखती हैं। जन्म तारीख ५ दिसम्बर १९६७ एवं जन्म स्थान भिंड(मध्यप्रदेश)है। आपका स्थाई निवास मेहगाँव,जिला भिंड है। शिक्षा एम.ए.(हिंदी साहित्य)है। श्रीमती जैन कार्यक्षेत्र में गृहिणी हैं। लेखन विधा-स्वतंत्र लेखन और छंद मुक्त है,व कविता, ग़ज़ल,हाइकु,वर्ण पिरामिड,लघुकथा, आलेख रचती हैं। प्रकाशन के तहत ३ साँझा काव्य संग्रह,हाइकु संग्रह एवं लघुकथा संग्रह आ चुके हैं। पाखी की रचनाएं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं झारखंड से इंदौर तक छपी हैं। आपको-शीर्षक सुमन,बाबू मुकुंदलाल गुप्त सम्मान,माओत्से की सुगंध आदि सम्मान मिले हैं। मनोरमा जैन की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के माध्यम से मन के भाव को शब्द देना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-हिंदी में पढ़े साहित्यकारों की लेखनी,हिंदी के प्राध्यापक डॉ. श्याम सनेही लाल शर्मा और उनकी रचनाएं हैं। मन के भाव को गद्य-पद्य में लिखना ही आपकी विशेषज्ञता है।

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