डॉ.अशोक
पटना(बिहार)
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बहुत तकलीफ़ है,
ग़म और तकलीफ़ में पड़े हुए हैं
अपने दामन में समेटे हुए,
गमों के पहाड़ को ढोने में लगे हैं।
दोस्ती अब बस कहने की ही बची है,
अपने लोगों की यहाँ गिनती कम होने लगी है
बातचीत लगभग बंद हो गई है,
मोबाइल पर ख़बरें बस दे रही उमंग है
खुशियों का वज़न घट गया है,
सुकून दम तोड़ता दिख रहा है
नम्रता और सुचिता बिल्कुल नहीं है,
बातचीत का तरीका बदल गया है।
बदलाव जग जाहिर है,
यहाँ पर भाईचारे में शून्यता है
समय-समय पर अक्सर लोग,
बस अपने काम के वास्ते
कभी-कभार गुफ्तगू करते हैं,
कुछ हासिल करने की ही फिराक में रहते हैं।
भाई-भाई में बनाव नहीं है,
पैसे और शोहरत की फ़िक्र दिखती यहाँ है
माँ-बाप को नहीं मिल रहा है सम्मान,
सबमें दिखता है बस अभिमान ही अभिमान।
रास्ते अलग-अलग हो चुके हैं,
परिवार में प्रेम रस अब नहीं बचा है
उत्सव और त्योहार बस सब दिखावा है,
सम्मिलित परिवार अब दिखता कहाँ है ?
पास-पड़ोस में भी मेल-मिलाप नहीं है,
अनबन यहाँ सीना तानकर खड़ी है
मुश्किल वक्त में किसी का साथ,
अब जहां में मिलता नहीं है
सब अपने-आपमें मशगूल दिखते यहाँ हैं।
यह है आज़ के जमाने की तस्वीर,
आज़ इस तपिश से परेशान होकर
मन करता है कि लोगों से करूं,
गुफ्तगू और तकरीर॥
परिचय–पटना (बिहार) में निवासरत डॉ.अशोक कुमार शर्मा कविता, लेख, लघुकथा व बाल कहानी लिखते हैं। आप डॉ.अशोक के नाम से रचना कर्म में सक्रिय हैं। शिक्षा एम.काम., एम.ए.(अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, हिंदी, इतिहास, लोक प्रशासन व ग्रामीण विकास) सहित एलएलबी, एलएलएम, एमबीए, सीएआईआईबी व पीएच.-डी.(रांची) है। अपर आयुक्त (प्रशासन) पद से सेवानिवृत्त डॉ. शर्मा द्वारा लिखित कई लघुकथा और कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिसमें-क्षितिज, गुलदस्ता, रजनीगंधा (लघुकथा) आदि हैं। अमलतास, शेफालिका, गुलमोहर, चंद्रमलिका, नीलकमल एवं अपराजिता (लघुकथा संग्रह) आदि प्रकाशन में है। ऐसे ही ५ बाल कहानी (पक्षियों की एकता की शक्ति, चिंटू लोमड़ी की चालाकी एवं रियान कौवा की झूठी चाल आदि) प्रकाशित हो चुकी है। आपने सम्मान के रूप में अंतराष्ट्रीय हिंदी साहित्य मंच द्वारा काव्य क्षेत्र में तीसरा, लेखन क्षेत्र में प्रथम, पांचवां व आठवां स्थान प्राप्त किया है। प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के कई अखबारों में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।