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जीवन के यथार्थ से संवाद करना है साक्षात्कार

लोकार्पण….

इंदौर (मप्र)।

जीवन के यथार्थ से संवाद करना साक्षात्कार है। इसमें वाचिक परंपरा से लेकर लिखित विधि का भी प्रयोग किया जाता है। ये भारतीय मनीषा की अतिप्राचीन परम्परा है। ‘अर्थ तलाशते शब्द’ कृति में १५ विद्वानों ने राकेश शर्मा के विभिन्न पहलुओं को जिस साहित्यिक रूप में प्रस्तुत किया है, वह आने वाली पीढ़ी के लिए मार्गदर्शन और दस्तावेज का कार्य करेगी।
यह बात विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) के कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कही। श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति द्वारा सन् १९२७ से प्रकाशित हिंदी पत्रिका ‘वीणा’ के वर्तमान सम्पादक राकेश शर्मा से देश के विभिन्न साहित्यकारों द्वारा लिया गया साक्षात्कार जिन्हें ‘अर्थ तलाशते शब्द’ कृति में समाहित किया गया, का आपकी अध्यक्षता में लोकार्पण किया गया। समिति के शिवाजी सभागार में डॉ. शर्मा के बाद अतिथि वक्ता अंतरा करवड़े ने कहा कि इसमें सामान्य होकर असामान्य होना और असामान्य होकर सामान्य होना बहुत ही सरलता के साथ बताया गया है। साहित्य जगत के लिए महत्वपूर्ण कृति है। इससे सृजन संदर्भ भावी पीढ़ी को भी मार्गदर्शन मिलेगा।
इस अवसर पर राकेश शर्मा ने सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय साहित्य में संवाद की परंपरा बहुत प्राचीन है। उन्होंने श्रीरामचरित मानस में कागभुशुण्ड और गरूड़ शंकर-पार्वती के साथ भगवद्गीता, अष्टावक्रजनक शंकराचार्य और मण्डन मिश्र आदि के ऐतिहासिक उदाहरण प्रस्तुत किए। यह भी कहा कि अब संवाद की परम्परा वाद और विवाद में परिवर्तित हो चुकी है। कार्यक्रम में कृष्णकुमार अष्ठाना, अरविंद जवलेकर, प्रदीप नवीन, डॉ. पुष्पेन्द्र दुबे, डॉ. शोभा प्रजापति आदि साहित्यकार उपस्थित रहे।

संचालन मुकेश तिवारी ने किया। प्रचार मंत्री हरेराम वाजपेयी ने आभार व्यक्त किया।

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