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कौड़ियों में भुनाए बैठे

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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यूँ ही तो नही नजरें झुकाए हुए बैठे हैं,
यूँ ही तो नहीं शरमाये डरे हुए बैठे हैं।

गुजरी आप पे या गुजार दी किसी पे,
यूँ ही तो नहीं घबराये हुए से बैठे हैं।

कुछ मिलने से ज्यादा है खोने का डर,
खाली तिजोरी पे ताला लगाये बैठे हैं।

खोने के डर की ऐसी मिली तालीम,
अपने साये को चिपकाए हुए बैठे हैं।

मिला कुछ तो क्या समझे हैं खुद को,
सीना फुलाया और ज्यादा ही ऐंठे हैं।

वश नहीं चला तो खो दिया है आपा,
नाराज से,खुद से,खार खाये बैठे हैं।

जेबें भर ली,मुट्ठियों में भी समेट लिया,
और की चाह में लार टपकाये बैठे हैं।

खुद की तारीफ इस कदर आदत बनी,
आईने में अपना चेहरा गढ़ाए बैठे हैं।

जमाने के साथ चलने की मजबूरी में,
खुद ही को कौड़ियों में भुनाये बैठे हैं॥

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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