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मित्र जौहरी

मच्छिंद्र भिसे
सातारा(महाराष्ट्र)

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मित्र! शब्द को जब भी सुनता हूँ मैं,

अक्सर कई मुस्कराती तस्वीरें सरसरी से

मानस पटल पर एक-एक कर उभर जाती हैं,

किसे अपना करीब कहूँ या सिर्फ नाम का

न जाने कितने ही सवाल पैदा कर जाती हैं।

बचपन से लेकर आज तक,

कदम से कदम मिलें कईं

और छूटे हैं कभी किसी मोड़ पर,

पर दिल में आज भी वे जीवित हैं

बस! दोस्ती के एक नाम पर,

फिर क्यों वो यादें ताजा हो जाती हैं और

मेरे दोस्त हैं वो,इसका एहसास दे जाती हैं।

खुशी में तो शरीक होते हैं सभी,

गम के वक्त,भाई दोस्त ही काम आए

न जाने दोस्ती के नाम कितने ही डंडे खाए,

बचाने की खातिर हमें माँ-बाप से डाँट पाए

खुशी और गम में उफ् तक न किया कभी,

बेशरम की हँसी-खुशी से मैं जला था कभी

यही जलन आज दोस्ती की मिसालें दे जाती हैं।

आज दोस्तों दोस्ती खुदगर्ज बनती है,

वास्ता देकर दोस्ती का खंजर घोंप जाती है

दोस्त,यार,भाई कहकर जहर पिरो जाती है,

फेर देखकर समय का,कौन हो तुम पूछ जाती है

सावधान रहें उनसे,जो चापलूसी को बने दोस्त हैं,

लेकर इम्तिहान कभी दोस्ती का देखो यारों

दोस्ती ही सारे सवालों के जवाब दे जाती है॥

परिचय-मच्छिंद्र भिसे का जन्म ३ मई १९८५ को भिरडाचीवाडी (तहसील वाई,जिला सातारा) में हुआ है। महाराष्ट्र से संबंध रखने वाले श्री भिसे का स्थाई बसेरा वर्तमान में भिरडाचीवाडी(पोस्ट भुईंज) में ही है। आपको मराठी,हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। शहर भिरडाचीवाडी निवासी श्री भिसे ने एम.ए.(हिंदी),बी.एड. एवं `सेट` (हिंदी)की शिक्षा प्राप्त की है और कार्यक्षेत्र में अध्यापक हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप महाराष्ट्र में पाठ्यपुस्तक निर्माण में समीक्षक सहित सातारा जिला हिंदी अध्यापक मंडल में सक्रिय कार्य(अध्यापक-छात्र प्रतियोगिताओं के आयोजन-नियोजन में)करते हुए अध्यापकों के लिए मार्गदर्शक के रूप में भी उपलब्ध हैं तो हिंदी विषय की कृति पुस्तिका के निर्माण और गणेशोत्सव मंडल में भी गत ७ साल से मार्गदर्शक की सफल भूमिका में हैं। साथ ही छात्रों के लिए विभिन्न वरिष्ठ साहित्यकारों की करीब १५ हजार रुपए की किताबें नि:शुल्क उपलब्ध कराकर पठन के लिए प्रेरित किया है। इनकी लेखन विधा-गीत,कविता,कहानी, एकांकी,हाइकु और मुक्तक भी है। आपकी रचनाएं देशस्तर की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो आपको सलूम्बर(राजस्थान)द्वारा आयोजित बाल साहित्यकार सम्मान समारोह एवं काव्य सम्मेलन में विशेष सहभागिता हेतु स्मृति चिह्न,महाराष्ट्र राज्य हिंदी अध्यापक महामंडल से अध्यापक निबंध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार के साथ ही राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समारोह(चितौड़गढ़)में महाराष्ट्र के प्रतिनिधित्व हेतु स्मृति चिह्न एवं किताबों की भेंट,जिला स्तरीय हिंदी अध्यापक वक्तृत्व प्रतोयोगिता में सम्मान तथा वर्ष २०१३ से २०१७ तक सातारा जिला हिंदी अध्यापक मंडल द्वारा कक्षा दसवीं में `हिंदी` विषय के विशेष परिणामों को लेकर भी सम्मानित किया गया है। ब्लॉग पर भी लेखन में सक्रिय मच्छिंद्र भिसे की विशेष उपलब्धि एक त्रैमासिक पत्रिका का सह-सम्पादक होना है। लेखनी का उद्देश्य-अपने विचारों को अभिव्यक्ति देना,उपयोग सामाजिक हित हेतु करना और मात्र हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’,महादेवी वर्मा हैं तो बाल साहित्यकार राजकुमार जैन `राजन` एवं तानाजी काशीनाथ सूर्यवंशी ‘ताका’ हैं। इनकी विशेषज्ञता-धन से ज्यादा मानव धन कमाने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“सरस्वती का सेवक हूँ। आज देश दुगनी गति से विकास कर रहा है,परंतु राजनीतिक व्यवस्था के कारण अनेक मुश्किलों का सामना जनता को करना पढ़ रहा है,जो बहुत ही घातक है। मेरे जीवन को स्तर हिंदी विषय अध्यापक होने के कारण ही मिला है। हिंदी ही मेरी पहचान है। पूरे विश्व ने हिंदी को अपनाया,परंतु पूरे भारतवासी इसे अपनाने में हिचकिचा रहे हैं,फलस्वरूप राष्ट्रीय भाषा होते हुए भी ‘राष्ट्रभाषा’ का दर्जा नहीं मिला है। अहिंदी राज्यों में शिक्षा से हिंदी विषय को ही हटाने का प्रयास जारी है। इस समस्या को मिटाने हेतु हिंदी का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार आवश्यक है।

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