बोधन राम निषाद ‘राज’
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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मेरे पिता जी की साईकल स्पर्धा विशेष…..
एक पुरानी साईकिल थी,
खूब मजे करते थे हम।
लिये पिता जी जब छोटे थे,
चलने से डरते थे हम॥
आज इसे हम रखें सहेजें,
अपने घर के आँगन में।
कभी बेचने की नहिं सोची,
पल भर भी अपने मन में॥
भाई-भाई कभी झगड़ते,
चाहत में मरते थे हम।
एक पुरानी साईकिल थी…
बाइस इंची रंग कालिमा,
थी प्यारी वो साईकिल।
आसानी से उसे चलाते,
कभी नहीं आती मुश्किल॥
बड़े मजे से सीख रहे थे,
गलियारे चलते थे हम।
एक पुरानी साईकिल थी…
नित्य सफाई करते हम भी,
चमक हमेशा रहती थी।
टायर पंचर सही-सलामत,
माता जी भी कहती थी॥
आशा करते कभी न बिगड़े,
ताले को जड़ते थे हम।
एक पुरानी साईकिल थी…॥